Gita Updesh: गीता के इन 5 उपदेशों से बेचैन मन भी हो जाता है शांत, जरूर याद रखें
Gita Updesh: जो व्यक्ति गीता में बताई बातों को अपने जीवन में अमल में लाता है वह निस्संदेह अपने काम में जरूर सफल होता है. यह मनुष्य के पथ प्रदर्शक का काम करता है.
By Shashank Baranwal | December 29, 2024 9:55 PM
Gita Updesh: हिन्दुओं का एक पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता है. स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को गीता के उपदेश दिए थे. जिस इंसान का मन विचलित हो या उसे चारों तरफ से असफलता और निराशा का सामना करना पड़ रहा है तो उसे श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ने की सलाह दी जाती है. जो व्यक्ति गीता में बताई बातों को अपने जीवन में अमल में लाता है वह निस्संदेह अपने काम में जरूर सफल होता है. यह मनुष्य के पथ प्रदर्शक का काम करता है. नियमित गीता के पाठ करने से मनुष्य का मन काबू में रहता है. ऐसे में गीता के कुछ उपदेश हैं जो कि बेचैन मन को शांत रखने का काम करता है.
गीता उपदेश के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जो मनुष्य कर्म करता है भाग्य भी उसी का साथ देता है. मनुष्य कर्म के सहारे भाग्य से ज्यादा प्राप्त कर सकता है. ऐसे में इंसान को केवल भाग्य के सहारे ही नहीं बैठे रहना चाहिए. उसे अपने पुरुषार्थ के हिसाब से कर्म करते रहना चाहिए. अगर इंसान का भाग्य कमजोर भी हो तो वह अपने कर्म से सब कुछ ठीक कर सकता है.
गीता उपदेश में बताया गया है कि अगर इंसान का मन बेचैन हो या उसके मन में भय और चिंताएं व्याप्त रहती है तो उसे भगवान के शरण में आ जाना चाहिए. जो इंसान सब कुछ छोड़ भगवान की शरण में आ जाता है उसमें किसी प्रकार का भय या चिंताएं नहीं रहती है. भगवान की शरण में आने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि मनुष्य को मोह से दूर रहना चाहिए. जो इंसान मोह में फंस जाता है, उसे हमेशा चिंता और भय सताता रहता है. मोह की वजह से व्यक्ति किसी भी विषय के आसक्ति में फंस जाता है. यह भी बताया गया है कि आसक्ति से इंसान के अंदर काम भाव जागृत होता है और इससे क्रोध भी बढ़ने लगता है. इसलिए उन्होंने कहा है कि व्यक्ति को मोह में नहीं फंसना चाहिए.
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहते हैं कि इंसान को हमेशा बुद्धि और विवेक से काम लेना चाहिए. जो इंसान बुद्धि और विवेक को प्राथमिकता नहीं देता है वह हमेशा परेशान रहता है. उसे किसी न किसी बात की हमेशा चिंता सताती रहती है. अगर मनुष्य विवेक से काम करता है तो उसका मन हमेशा शांत रहता है.
श्रीमद्भगवद्गीता के मुताबिक जो इंसान केवल कर्म पर ध्यान देता है उसे असफलता का डर कभी नहीं सताता है. ऐसे में व्यक्ति को कभी भी परिणाम को सोचकर काम नहीं करना चाहिए. परिणाम सोचकर किए जाने वाले काम से व्यक्ति में चिंता और भय का संचार होता है.