जब क्रोध पर न हो काबू, तो याद रखें गीता के ये सूत्र
Gita Updesh: गीता का मुख्य संदेश स्वार्थ रहित कर्म, ईश्वर में विश्वास और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण है. यही पथ हमें मोह से मुक्त कर, सच्ची शांति की ओर ले जाता है. यह ग्रंथ आंतरिक शांति, आत्म-स्थिरता और आत्मा की आवाज को सुनने की प्रेरणा देता है.
By Shashank Baranwal | April 20, 2025 7:34 AM
Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता जीवन की कठिन घड़ियों में मार्गदर्शन देने वाला अद्वितीय ग्रंथ है. यह केवल धर्म की बातें नहीं करता, बल्कि आत्मा की गहराई से भी संवाद करता है. जब जीवन में निराशा, भ्रम और पीड़ा हो, तब गीता सिखाती है कि शांत रहो, कर्म करते रहो और फल की चिंता भगवान पर छोड़ दो. यह हमें आंतरिक स्थिरता, आत्म-ज्ञान और सच्चे प्रेम का अनुभव कराती है. गीता का मुख्य संदेश स्वार्थ रहित कर्म, ईश्वर में विश्वास और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण है. यही पथ हमें मोह से मुक्त कर, सच्ची शांति की ओर ले जाता है. यह ग्रंथ आंतरिक शांति, आत्म-स्थिरता और आत्मा की आवाज को सुनने की प्रेरणा देता है. आज मनुष्य अधीर होता जा रहा है, उसकी सुनने की क्षमता खत्म होती जा रही है, जिसकी वजह से लोगों का मन बहुत ही चिड़चिड़ा और गुस्सैल होता जा रहा है. ऐसे में अगर आप भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुजर रहे हैं और गुस्से पर काबू पाना चाहते है, तो गीता के इन उपदेशों की मदद से आप अपने गुस्से पर काबू पा सकते हैं.
आत्मसंयम और ध्यान का अभ्यास
श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि मनुष्य का उद्धार उसी के अपने हाथ में ही है. अगर वह चाहे तो स्वयं को ऊपर उठा सकता है या फिर गिरा भी सकता है. उसका मन ही उसका सबसे बड़ा मित्र है और वही मन उसका शत्रु भी बन सकता है. इसलिए क्रोध पर विजय पाने के लिए आत्मसंयम, ध्यान और मन की शुद्धि जरूरी होती है. जब मन शुद्ध होता है, तो विचार शांत होते हैं और निर्णय सही दिशा में लिए जाते हैं. तभी जीवन में सच्चा संतुलन और शांति संभव होती है.
गीता उपदेश में बताया गया है कि जिस प्रकार नदियां निरंतर समुद्र में समा जाती हैं, परंतु समुद्र अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता, उसी तरह जो व्यक्ति सुख-दुख, लाभ-हानि जैसे विषयों के बीच भी शांत रहता है, वही वास्तविक शांति को प्राप्त करता है. इस कथन से यह सीख मिलती है कि क्रोध की अवस्था में भी जिस मनुष्य का मन स्थिर रहता है, वही आत्मसंयमी कहलाता है. जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें और प्रतिक्रिया देने से पहले विवेकपूर्ण निर्णय लें.
बुद्धि को नष्ट करता है क्रोध
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि क्रोध मनुष्य की मानसिक स्पष्टता को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है. पहले वह भ्रम पैदा करता है, फिर स्मृति को कमजोर करता है, जिससे बुद्धि का नाश हो जाता है. जब बुद्धि साथ छोड़ देती है, तब व्यक्ति सही और गलत में फर्क नहीं कर पाता और पतन की ओर बढ़ता है. इसलिए क्रोध को काबू में रखना और हर परिस्थिति में संयम व विवेक से कार्य करना जरूरी है. शांत और संतुलित मन ही सही निर्णय लेने में सक्षम होता है.