Table of Contents
- बचपन से ही बनना चाहती थीं आर्मी अफसर
- साल 2016 में सेना में शामिल हुईं राधिका
- 2023 में यूएन एंगेजमेंट प्लाटून कमांडर के रूप में कांगो में तैनाती
- महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए किया काम
- प्रोफाइल पर एक नजर
Inspiration: विगत कुछ दशकों में महिलाओं की स्थिति में काफी बदलाव आया है. जहां पहले पुरुष सेना में शामिल होकर देश की रक्षा करते थे, वहीं अब महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. घर-परिवार की जिम्मेवारियों को निभाते हुए आज महिलाओं ने घर की दहलीज लांघ ली है. अब वह भी सीमा पार बैठे दुश्मनों से देश को बचा रही हैं. साथ ही अपनी बहादुरी और अदम्य साहस से देश का मान बढ़ा रही हैं. हिमाचल की एक ऐसी ही बेटी हैं राधिका सेन, जिन्होंने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड 2023 पाकर देश को गौरवान्वित महसूस कराया है.
कहते हैं कि मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसले से उड़ान होती है. कविता की ये चंद पंक्तियां हिमाचल प्रदेश की बेटी मेजर राधिका सेन पर सटीक बैठती हैं. 31 वर्षीया राधिका ने इसे बखूबी समझा है, बल्कि साबित कर दिखाया है कि हौसले के दम पर आसमान भी हासिल किया जा सकता है. दृढ़ संकल्प और हौसलों की मिसाल बनी राधिका को हाल ही में अंतरराष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक दिवस पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने प्रतिष्ठित मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड 2023 से सम्मानित किया है. मेजर सुमन गवानी के बाद राधिका यह सम्मान पाने वाली दूसरी भारतीय शांतिदूत हैं. सुमन गवानी ने दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन के साथ काम किया था और साल 2019 में उन्हें यह सम्मान मिला था. अपनी इस खास उपलब्धि से मेजर राधिका आज लाखों युवाओं की प्रेरणास्रोत बन गयी हैं, जो रक्षा के क्षेत्र में शामिल होकर दुनिया भर में देश का नाम रोशन करने की चाहत रखते हैं.
बचपन से ही बनना चाहती थीं आर्मी अफसर
राधिका सेन का जन्म साल 1993 में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सुंदरनगर कस्बे में हुआ था. उनके पिता का नाम ओंकार सेन और माता का नाम निर्मला सेन हैं. उनके पिता पहले एनआइटी हमीरपुर में कार्यरत थे, जबकि मां निर्मला सेन चौहारवैली के कथोग स्कूल में प्रधानाचार्य के पद पर तैनात थीं. हालांकि, अब दोनों रिटायर्ड हो चुके हैं. राधिका ने अपनी शुरुआती पढ़ाई सुंदरनगर के सेंट मैरी स्कूल से पूरी की. यहां से दसवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह चंडीगढ़ चली गयीं और यहां के माउंट कार्मल स्कूल में एडमिशन ले लिया. माउंट कार्मल स्कूल से उन्होंने साइंस विषय लेकर ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने बीटेक (बायोटेक्नोलॉजी) की पढ़ाई की. भले ही राधिका के पास इंजीनियरिंग की डिग्री थी, लेकिन बचपन से ही वह भारतीय सेना ज्वाइन करने का ख्वाब देखा करती थीं.
साल 2016 में सेना में शामिल हुईं राधिका
बायोटेक इंजीनियर की डिग्री लेने के बाद राधिका ने आगे की पढ़ाई के लिए आइआइटी, मुंबई जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में एडमिशन ले लिया, जहां से उन्होंने एमटेक (बायोटेक्नोलॉजी) की डिग्री हासिल की. राधिका चाहतीं, तो वह किसी बड़े रिसर्च संस्थान या एमएनसी में बड़े पैकेज वाली नौकरी कर आराम की जिंदगी जी सकती थीं, लेकिन बचपन से ही उनके भीतर आर्मी अफसर बनकर देश की सेवा करने का जुनून सवार था. लिहाजा, आइआइटी, मुंबई में एमटेक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने फैसला कर लिया कि उन्हें तो बस आर्मी ज्वाइन करना है. शुरुआत में उनके माता-पिता ने भी उन्हें काफी समझाया और इंजीनियरिंग में करियर बनाने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने किसी की एक न सुनी. आखिरकार, उनके माता-पिता ने भी सहमति दे दी. 10 सितंबर, 2016 को वह भारतीय सेना में शामिल हुईं. शुरुआत में उन्हें आर्मी सर्विस कोर्प्स में तैनात किया गया. साल 2016 में राधिका ने कमीशन पास करते हुए सेना में अपनी सेवाएं शुरू कीं. इसके बाद चेन्नई ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी से पास आउट होने के बाद श्रीनगर में पहली पोस्टिंग मिली, जिसके बाद उन्होंने लेह-लद्दाख, पश्चिम बंगाल और सिक्किम में अपनी सेवाएं दीं. इस दौरान उन्होंने कई चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का बखूबी सामना किया. इसके लिए सेना की तरफ से कई सम्मान भी मिले.
2023 में यूएन एंगेजमेंट प्लाटून कमांडर के रूप में कांगो में तैनाती
भारतीय सेना में शामिल होकर मेजर राधिका सेन लगातार एक के बाद एक पायदान ऊपर बढ़ती गयीं. उनके अदम्य साहस को देखते हुए साल 2023 में उन्हें इंडियन रैपिड डिप्लॉयमेंट बटालियन के साथ यूएन एंगेजमेंट प्लाटून कमांडर के रूप में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (मोनुस्को) में नियुक्त किया गया. राधिका की मानें, तो उनका एंगेजमेंट प्लाटून में होने का मुख्य उद्देश्य लोगों को कुछ अलग करने के लिए प्रेरित करना था. वे कहती, “किसी भी संघर्ष वाले इलाके में महिलाएं एवं लड़कियां ही असमान रूप से प्रभावित होती हैं.” उनका और उनकी टीम का प्रयास उन महिलाओं और लड़कियों तक पहुंचना था. उनसे उनकी परेशानियों को लेकर बात करना और उन दिक्कतों से उन्हें बाहर निकालना था. यही उन्होंने कांगों में किया.
महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए किया काम
राधिका सेन ने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र मिशन के साथ काम किया, जहां उन्होंने उत्तरी किवु में एक अलर्ट नेटवर्क बनाने में मदद की, जो समुदाय के लोगों, युवाओं और महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए आवाज उठाने के लिए एक मंच प्रदान किया. उन्होंने समर्पण भाव से महिलाओं और लड़कियों सहित संघर्ष-प्रभावित समुदायों का विश्वास जीता. सेन के सैनिकों ने उत्तरी किवु में बढ़ते संघर्ष के माहौल में उनके साथ काम किया. उन्होंने अप्रैल 2024 में अपना कार्यकाल पूरा किया. राधिका के कामों को देखकर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी काफी प्रशंसा की. साथ ही उन्हें लाखों युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बताया.
प्रोफाइल पर एक नजर
नाम : मेजर राधिका सेन
जन्म-स्थान : साल 1993, मंडी, हिमाचल प्रदेश
माता-पिता : निर्मला सेन एवं ओंकार सेन
शिक्षा : दसवीं, सेंट मैरी स्कूल, सुंदरनगर
12वीं माउंट कार्मल स्कूल, चंडीगढ़
एमटेक (बायोटेक्नोलॉजी), आइआइटी, मुंबई
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