जिलोमोल थॉमस : बिना हाथों के ड्राइविंग लाइसेंस लेने वालीं एशिया की पहली महिला, जिद और हौसला है इनकी पहचान

Success Story: कुछ लोग जहां थोड़ी मुश्किलों से ही घबरा जाते हैं, तो कुछ उन्हीं मुश्किलों को अपनी ताकत बना लेते हैं. केरल की रहने वाली 32 वर्षीया जिलुमोल मेरिएट थॉमस की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.जिलुमोल एशिया की पहली ऐसी महिला बन गयी हैं, जिनके दोनों हाथ न होने के बाद भी ड्राइविंग लाइसेंस मिला है

By Prabhat Khabar News Desk | December 21, 2023 7:28 PM
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Success Story : जिलुमोल मेरिएट थॉमस को शुरू से ही कार चलाने का बेहद शौक था, लेकिन जन्म से ही उनके दोनों हाथ नहीं थे. ऐसे में उन्होंने अपने शौक को पूरा करने के लिए पैरों से कार चलाना सीख लिया. फिर वह ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने में जुट गयीं.करीब छह साल के संघर्ष के बाद अब जाकर उन्हें लाइसेंस मिला है. इसके साथ ही जिलुमोल एशिया की पहली ऐसी महिला बन गयी हैं, जिनके दोनों हाथ न होने के बाद भी ड्राइविंग लाइसेंस मिला है. केरल की रहनेवाली जिलुमोल मेरिएट थॉमस के हौसले काफी बुलंद हैं. तभी तो बिना हाथों के कार ड्राइव करने का ड्राइविंग लाइसेंस पाने वाली यह एशिया की पहली महिला बन गयी हैं. जिलुमोल को बचपन से ही कार चलाने का काफी शौक था और यह इच्छा तब और प्रबल हो गयी, जब पता चला कि बिना हाथ के एक शख्स विक्रम अग्निहोत्री को ड्राइविंग लाइसेंस मिला है. अपने हौसलों और जुनून के दम पर जिलुमोल ने भी कामयाबी पायी है. हालांकि, उनके लिए यह कामयाबी इतनी आसान नहीं थी. उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस के लिए करीब छह साल तक का लंबा संघर्ष करना पड़ा है. आखिरकार, अब जाकर उनकी मेहनत रंग लायी है. हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने खुद उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस सौंपा है.

जिलुमोल मेरिएट थॉमस का जन्म 10 अक्तूबर, 1991 को केरल के इडुक्की जिले के थोडुपुझा में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता एनवी थॉमस खेतीबाड़ी करते हैं, जबकि मां अन्नकुट्टी गृहिणी थीं. आमतौर पर जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो उसके परिवार के चेहरे पर खुशी नजर आती है, लेकिन जिलुमोल का जन्म उनके माता-पिता के लिए किसी गहरे सदमे से कम नहीं था, क्योंकि जन्म से ही उनके दोनों हाथ गायब थे. यह देखकर अस्पताल के डॉक्टर और नर्स भी हैरान थीं. उस दौरान एनवी थॉमस और अन्नाकुट्टी की आर्थिक स्थिति देखकर एक महिला डॉक्टर नवजात बच्ची को गोद लेेने के लिए भी तैयार हो गयीं, लेकिन थॉमस दंपती ने इनकार कर दिया. बिना हाथ के जन्मी बच्ची को देखकर एनवी थॉमस के रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने भी खूब खरी-खोटी सुनायी. लोग ताना देते कि ऐसी बच्ची पैदा होने से अच्छा है कि नि:संतान रहे, लेकिन थॉमस दंपती ने इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया. एनवी थॉमस और अन्नाकुट्टी ने नन्हीं जिलुमोल को बड़े लाड-प्यार से पाला और देखभाल की.

मगर जिलुमोल के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, महज चार साल की उम्र में उनके सिर से मां का साया उठ गया. तब उनकी देखभाल की जिम्मेदारी उनकी दादी के ऊपर आ गयी. उनकी दादी यह नहीं चाहती थीं कि उनकी पाेती हर चीज के लिए दूसरे पर निर्भर रहे. लिहाजा, उन्होंने जिलुमोल को पैरों से काम करने के लिए प्रेरित करने लगीं. इसके लिए उन्होंने बकायदा एक तरकीब अपनायी. वह घर में किताबों के ढेर को अपने पैर से बिखेर देती थीं और जिलुमोल को उन किताबों को पैरों की मदद से एकत्रित करने और सहेजने के लिए बोलती थीं. जिलुमोल जैसी असाधारण बच्ची के लिए दादी का यह सबसे बड़ा सबक था, जो जीवन भर उनके काम आया. शुरू में एक छोटी बच्ची को पैरों की अंगुलियों से किताबों को उठाना काफी मुश्किल काम लगा रहा था. मगर, धीरे-धीरे जिलुमोल इसकी अभ्यस्त हो गयी. जिलुमोल को मालूम पड़ गया कि उनके पैर िसर्फ चलने के लिए नहीं हैं, बल्कि किताब या मोबाइल फोन पकड़ने या अपने बालों में कंघी करने जैसे जरूरी काम करने के लिए भी हैं.

जिलुमोल की मां के निधन के बाद उनके घर की माली हालत खराब होने लगी थी. मजबूरन के उनके किसान पिता ने उन्हें कैथोलिक नन द्वारा संचालित मर्सी होम में भेजा दिया, लेकिन उनके लिए यह मर्सी होम किसी वरदान से कम नहीं था. क्योंकि, अब वह अकेली ऐसी लड़की नहीं थी, बल्कि उनकी तरह वहां कई लड़कियां रह रही थीं, जो अलग-अलग दिव्यांगता से जूझ रही थीं. हर किसी की अपनी-अपनी चुनौती थी. बावजूद इसके मर्सी होम में रहने वालीं सिस्टर उन बच्चियों में पॉजिटिविटी और आत्मविश्वास जगाने के लिए काफी प्रयास करती थीं. मर्सी में होम में रहने के दौरान पैरों से काम करने की जिलुमोल की ट्रेनिंग बहुत काम आयी. धीरे-धीरे वह अपने दाहिने पैर से लिखने और चित्र बनाने में पारंगत हो गयीं. जिलुमोल को शुरू से ही पेंटिंग करना और स्केच बनाना काफी पसंद था. उनकी पेंटिंग को लोग काफी पसंद करते थे. इसलिए 12वीं कक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने इसी में करियर बनाने का फैसला किया. तब उन्होंने केरल के चंगनाचेरी में सेंट जोसेफ कॉलेज ऑफ कम्युनिकेशन (एसजेसीसी) से कला (एनीमेशन और ग्राफिक डिजाइन) में स्नातक की डिग्री हासिल की.

कई कंपनियों में कर चुकी हैं ग्राफिक डिजाइनर का काम

जिलुमोल ने एनीमेशन और ग्राफिक डिजाइन में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने अपना और अपने घर का खर्च चलाने के लिए कई जगहों पर नौकरी के लिए प्रयास किया. लेकिन, उनकी स्थिति को देखकर शुरू में लोग नौकरी देने को तैयार नहीं होते थे. अथक प्रयास के बाद उन्हें काम मिला. फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में बतौर ग्राफिक डिजाइनर का काम किया. नौकरी के दौरान उन्हें ऑफिस आने-जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था. लिहाजा, उन्होंने अपने बचपन के शौक को पूरा करने के लिए खुद की कार खरीद ली और पैरों से चलाना सीख लिया. वह पैरों के जरिये कार चलाती हैं. पैरों से ही स्टेयरिंग संभालती हैं आैर कार में गियर डालती हैं. हालांकि, जिलुमोल के लिए यह इतना अासान नहीं था. इसके लिए उन्हें लंबे समय तक ट्रेनिंग लेनी पड़ी.

जिलुमोल ने ऐसे साकार किये बचपन के सपने

जिलुमोल के बचपन के सपनों को नयी उड़ान भरने में कोच्चि की एक स्टार्टअप फर्म वी इनोवेशन ने काफी मदद की. इस स्टार्टअप ने उनकी कार के लिए खासतौर पर ऑपरेटिंग इंडिकेटर्स, वाइपर व हेडलैंप के लिए वॉयस कमांड बेस्ड सिस्टम डेवलप किये. इस तकनीकी और सिस्टम की मदद से जिलुमोल को कार चलाने के लिए हाथों का इस्तेमाल नहीं करना होता है. वह सिर्फ एक आवाज के जरिये कुछ फीचर्स को ऑपरेट करती हैं.

डीएल के लिए लड़ी लड़ाई

जिलुमोल को ड्राइविंग लाइसेंस के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. उन्होंने डीएल के लिए इडुक्की के थोडुपुझा आरटीओ से संपर्क किया. आरटीओ ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया. फिर उन्होंने केरल हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट के आदेश पर उन्होंने एक टेस्ट में हिस्सा लिया. उन्होंने कार चलाकर दिखा दी, पर आरटीओ अफसरों ने फिर से उसे खारिज कर दिया. छह साल बाद अब जाकर वह ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने में सफल हुई हैं.

प्रस्तुति : देवेंद्र कुमार

एक परिचय

नाम : जिलुमोल मेरिएट थॉमस

माता-पिता : अन्नाकुटी और एनवी थॉमस

जन्म स्थान : थोडुपुझा, केरल

एजुकेशन : एनीमेशन और ग्राफिक डिजाइन, सेंट जोसेफ कॉलेज ऑफ कम्युनिकेशन

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