बाहरी रूप नहीं, आंतरिक गुण ही असली सुंदरता, गीता से सीखें चरित्र निर्माण की कला
Gita Updesh: गीता हमें आंतरिक स्थिरता और सच्चे प्रेम का अनुभव कराकर आत्मा की ओर लौटने की प्रेरणा देती है, जिससे जीवन में संतुलन और शांति आती है. गीता मनुष्य के चरित्र के विकास में अहम योगदान करती है.
By Shashank Baranwal | April 21, 2025 8:37 AM
Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है जो जीवन की कठिन घड़ियों में मानसिक और आत्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है. यह केवल धर्म या पूजा की बात नहीं करता, बल्कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है. जब जीवन में निराशा, उलझन और पीड़ा होती है, तब गीता हमें सिखाती है कि शांत रहकर, बिना फल की चिंता किए, कर्म करते रहो. इसका मूल संदेश निष्काम कर्म, ईश्वर में विश्वास और आत्म-ज्ञान है. आज का मनुष्य अधीर और चिड़चिड़ा होता जा रहा है क्योंकि वह भीतर की आवाज सुनना भूल गया है. गीता हमें आंतरिक स्थिरता और सच्चे प्रेम का अनुभव कराकर आत्मा की ओर लौटने की प्रेरणा देती है, जिससे जीवन में संतुलन और शांति आती है. गीता मनुष्य के चरित्र के विकास में अहम योगदान करती है. यह सिखाती है कि शरीर की सुंदरता नहीं बल्कि चरित्र के विकास में ये बाते मायने रखती हैं.
भगवद्गीता के अनुसार, व्यक्ति का आचरण और कर्म ही उसके चरित्र का सच्चा प्रतिबिंब होते हैं. जैसा कर्म वह करता है, वैसा ही उसका स्वभाव और आत्मिक स्तर समझा जाता है.
गीता के उपदेशों में यह स्पष्ट किया गया है कि केवल कर्म ही नहीं, बल्कि मनुष्य के विचार और भावना भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि शुद्ध विचारों से ही निष्काम और धर्मपूर्ण कर्म जन्म लेते हैं.
गीता उपदेश के अनुसार, मनुष्य की वाणी उसका वास्तविक स्वर प्रकट करती है. वाणी से ही उसके विचार, संस्कार और चरित्र का आभास होता है. संयमित, सत्य और मधुर वाणी व्यक्ति की पहचान बनती है और उसी से वह परखा जाता है.
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, मनुष्य के कर्म, विचार और वाणी के साथ-साथ उसका व्यवहार और संस्कार भी चरित्र निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं. यह सभी पहलू मिलकर व्यक्ति के आंतरिक स्वरूप और आत्मिक विकास को दर्शाते हैं.