Mouli tradition: किस हाथ में मौली बांधें: क्या हैं मान्यता, विधि और धार्मिक महत्व
Mouli tradition: यह आर्टिकल मौली बांधने की परंपरा, सही हाथ में बांधने का तरीका और इसके धार्मिक महत्व को समझाता है. इसमें कुंवारी लड़कियों, महिलाओं और पुरुषों के लिए मौली बांधने की विधि और इसके लाभों के बारे में जानकारी दी गई है.
By Rinki Singh | August 17, 2024 8:20 PM
Mouli tradition: मौली बांधना एक धार्मिक परंपरा है जो हमारी धार्मिक आस्था, सुरक्षा और ऊर्जा को दर्शाता है. मौली हिंदू धर्म का धार्मिक प्रतीक है. यह पूजा-पाठ, त्योहारों और विशेष अवसरों पर हाथ में बांधी जाती है. इस धागे का रंग, उसकी डिजाइन और इसे बांधने की विधि सभी का धार्मिक महत्व होता है. आइए, इस परंपरा के बारे में विस्तार से जानें और यह भी समझें कि लोगों के लिए इसे बांधने की विधि क्या है.
मौली क्या है?
मौली एक धार्मिक धागा होता है जिसे पूजा के समय हाथ में बांधा जाता है. यह आमतौर पर लाल, पीला या गुलाबी रंग की होती है . मौली का बांधने का मुख्य उद्देश्य धार्मिक ऊर्जा और सकारात्मकता को फैलाना होता है. इसे कभी-कभी कलेवा भी कहा जाता है, जो शुभता का प्रतीक होता है.
मौली बांधने की विधि धर्म और परंपरा के अनुसार बदलती है. मुख्य रूप से, मौली को बांधने का सही तरीका इस प्रकार है.
कुंवारी लड़कियों के लिए
कुंवारी लड़कियों को मौली दाएं हाथ की कलाई पर बांधनी चाहिए. यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि दायां हाथ कर्मों का प्रतीक है और इसे शुभ माना जाता है.
महिलाओं के लिए
विवाहित महिलाओं के लिए मौली बांधने का परंपरागत तरीका बाएं हाथ की कलाई पर होता है. बायां हाथ पारंपरिक रूप से आध्यात्मिकता और धार्मिकता का प्रतीक माना जाता है.
पुरुषों के लिए
पुरुषों को भी मौली बांधते समय इसे दाएं हाथ की कलाई पर बांधना चाहिए. मौली बांधने से पहले, पूजा के दौरान मंत्रों का उच्चारण करना और भगवान का स्मरण करना आवश्यक है. इसके साथ ही, मौली को बांधने से पहले उसे देवताओं के चरणों में समर्पित करना चाहिए, मौली बांधने से व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है.