-निशांत-
जैसे ही घर में सबको पता चला कि मैंने नागालैंड जाने का इरादा किया है, सब हैरान हो गये. हैरान से ज्यादा परेशान क्योंकि इस सुदूर राज्य के बारे में अव्वल तो किसी को खास जानकारी नहीं और जो है भी, वो पूर्वाग्रहों से भरी. घबराहाट मुझे भी थी क्योंकि पहली बार भारत के इस कोने में जा रहे थे. खैर, तय प्लान के मुताबिक मैंने कोहिमा पहुंचने के लिए दीमापुर तक की रेल यात्रा की. वजह साफ है भारतीय रेल आपको भारत दर्शन बखूबी कराता है. यहां हवाई जहाज से भी पहुंचा जा सकता है. उसके बाद अगले सत्तर किलोमीटर के लिए टैक्सी या बस की सुविधा मिलती है और वैसे ही मैं नागालैंड की राजधानी कोहिमा पहुंचा. कुछ ही देर में समझ आने लगा कि यह जगह अलग है. कहने को भारत के एक प्रदेश की राजधानी है, लेकिन शाम ढलते ही घुप अंधेरा और सड़कों पर सन्नाटा छा गया. जब हमारी शाम होती है, तब वहां रात हो जाती है. वैसे अगले दिन सुबह साढ़े चार बजे सूरज की नींद उड़ा देने वाली चमक ने इस बात का :हसास करा दिया कि जब दिन इतनी जल्दी शुरू होगा तो रात भी जल्दी हो ही जायेगी.
सुबह जब गुलाबी धूप से आंख खुली तो सामने थी ऐसी हरियाली जिसका वर्णन शायद संभव नहीं. और ऐसा नीला आसमान जिसके बारे में कुछ कहने के लिए शब्द नहीं. सहसा फोन की स्क्रीन पर दिख रहे स्थानीय तापमान और वायु गुणवत्ता सूचकांक पर नजर पड़ी तो एक बार फिर अहसास हुआ कि यह जगह वाकई बहुत दूर और अलग है. यूं ही नहीं इसे नॉर्थ ईस्ट का स्विट्जरलैंड कहते हैं. दूर दूर तक दिखती पटकाई माउंटेन रेंज में नागा हिल्स की हरियाली और उन पहाड़ियों के बीच कहीं कहीं पर दो-तीन टीन शेड या कच्चे मकान अपनी ओर आकर्षित करते हैं. स्थानीय लोगों से पता चला कि नागा समाज ऐसा ही है. शांतिप्रिय, भीड़ से दूर रहना पसंद करने वाला.
मेरी वहां सबसे पहले चखेसांग जनजाति के काइसो चकरे पेशे से टैक्सी ड्राइवर से पहजान हुई. नागा समुदाय से हैं लेकिन अधिकांश की तरह अब ईसाई हैं. उनकी मानें तो नागा लोग भीड़ पसंद नहीं करते. इसलिए जंगल में ऐसे रहते हैं. जो शहरों में रहते हैं, नौकरी पेशा हैं, वो भी शाम को घर आने के बाद, घर में ही रहना पसंद करते हैं. फिर वो हंसते हुए बताते हैं, हम लोगों को ज़्यादा की ख्वाहिश नहीं, जितना है बहुत है. हम इसी जंगल में खुश हैं. जीतने भी स्थानीय लोगों से बात हुई, उनमें से अधिकांश नागालैंड के बाहर नहीं गये. ऐसी कोई इच्छा उनमें से अधिकांश के अंदर दिखी भी नहीं. सब वाकई अपने जीवन में सुखी लगे. अपने लगभग हफ्ते भर के प्रवास में मुझे यह बात साफ समझ आ गयी कि स्थानीय समुदाय विशुद्ध रूप से संतोषी स्वभाव का है और अपने सादे सरल, जनजातीय जीवन में मस्त और व्यस्त है.
नागालैंड के मेरे पहले मित्र काइसो दीमापुर में रहते हैं और वहां से कोहिमा के बीच टैक्सी चलाते हैं. एक तरफ का किराया लगभग अट्ठारह सौ से दो हज़ार लेते हैं. सफर लगभग दो घंटे का होता है. मतलब औसतन दिन में वो दो चक्कर लगा सकते हैं. इसका मतलब औसतन सात से आठ हजार रुपये कमा लेते हैं. तीन चक्कर लग जाये तो कमाई में और इजाफा, लेकिन काइसो सिर्फ एक चक्कर लगाते हैं. वक्त भी कोई तय नहीं. जब मन हुआ गाड़ी लेकर रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डे आ जाते हैं. जैसे ही सवारी मिलती है, निकल लेते हैं. वापसी पर उधर से दूसरी सवारी ले कर आ जाते हैं. सवारी को अगर रास्ते में रूकना है, फोटो खिंचनी है या आस पास घूमना है, तो काइसो नाराज नहीं होते. मुझसे कहा- आप सर आराम से चलिए. हमें कोई जल्दी नहीं. घर ही जाना है यहां से. आप बता दीजिएगा कहां-कहां रुकना है. हम आपको घूमा देंगे. उनसे हुई लंबी वार्ता में पता चला उन्हें ज़्यादा पैसा कमाने की जरा भी हवस नहीं. जितना मिल रहा है उतने में वो बेहद खुश लगे.
नागा समुदाय कृषि पर निर्भर है, लेकिन कीटनाशक और उर्वरक क्या होते हैं, ये अधिकांश नागा समुदाय को नहीं पता. उन्हें इनकी जरूरत नहीं. सब कुछ हरा भरा और सेहत से भरपूर लगता है यहां. काइसो की ही तरह देरहा और सांगसोई भी थे. ये दोनों भी टैक्सी चलाते हैं. लेकिन यह कोहिमा शहर में ही गाड़ी चलाते हैं. अगर ये चाहें तो ये भी दीमापुर तक पैसेंजर ड्रॉप करने जा सकते हैं. बस एक पर्ची कटानी पड़ेगी. कोई अलग से शुल्क भी नहीं देना होगा। लेकिन इन्हें भी ज़्यादा कमाई का चस्का नहीं. उन हरे पहाड़ों के बीच सड़कों पर निकलते हुए मैंने काइसो से पूछा कि आखिर क्या वजह है जो इतने घने और हरे जंगल होने के बावजूद यहां कहीं कोई जानवर नहीं दिखता. जवाब में उसने सहजता से कहा, सब खा लिए जाते हैं इसलिए दिखते नहीं. हो सकता है इसमें थोड़ी अतिश्योक्ति हो, लेकिन कोहिमा में न कहीं आवारा जानवर दिखते हैं न पहाड़ियों पर चरते हुए गाय भैंस बकरी दिखते हैं. हां, वहां के बाज़ारों में जानवर दिखे. पहले लगा उन दुकानों पर पालतू जानवर बिकते हैं, लेकिन कुछ देर बाद पता चला उन दुकानों पर खाने पीने की चीज़ें बिकती हैं. जानवर भी. कीड़े, मक्खी, मेंढक, सूअर, कुत्ता, खरगोश, बत्तख, ईल, घोंघा, और भी न जाने क्या- क्या. हर वो चीज जो चार पैर पर चलती है, वो शायद नागा समुदाय के लिए खाद्य सामाग्री है. खाने के लिए कुत्ता भी एक पसंदीदा जानवर है. कुछ जनजातियां बंदर भी खाती हैं.
वैसे वहां स्थानीय नागा लोगों से बात करने पर पता चला कि रोज़मर्रा की खुराक में चावल और पोर्क खाया जाता है. मेंढक, ईल, घोंघा, आदि भूख के लिए कम बल्कि अपने औषधीय गुणों के लिए खाये जाते हैं. इसी क्रम में काइसो से पता चला कि सभी 16 नागा जनजातियों में शिकार कर के खाना अब भी प्रचलित है. इस बात कि तस्दीक कोहिमा में जंगलों के आस पास लगे शिकार आदि से जुड़े दिशानिर्देश करते हैं. नागा समुदाय के खानपान और रहन सहन को लेकर एक बात एक स्थानीय ने बतायी कि नागा परिवार की लड़की तो एक बार को शादी कर के किसी दूसरे समुदाय में जा सकती है, लेकिन किसी दूसरे समुदाय की लड़की का नागा परिवार में रहना मुश्किल है. मुस्कुराते हुए उस स्थानीय ने इसकी वजह बताते हुए कहा, हमारे घर का खाना वो नहीं खा पायेगी.
ईसाई मिशनरीज के प्रभाव से यहां के लोगों ने ईसाई धर्म तो काफी संख्या में स्वीकार कर लिया है, लेकिन उनके रहन सहन, खाने पीने और जीवन जीने में उनकी नागा संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है. लेकिन ईसाई मिशनरीज के प्रभाव से उनकी संस्कृति अछूती नहीं रही ये भी एक सच है. कोहिमा के मुख्य बाजार में पाश्चात्य सभ्यता का असर साफ दिखता है. सड़क पर बीच बीच में ऐसा लगता है कि आप वाकई दक्षिण कोरिया में हों. युवक- युवती बिलकुल वैसी ही वेषभूषा में दिखते हैं. नागालैंड सरकार ने जब देखा कि स्थानीय जनजातियां अपनी संस्कृति भूल रही हैं, तब तय किया गया कि एक सालाना आयोजन किया जाये जिसमें सभी जनजातियां अपनी पारंपरिक जीवनशैली, संस्कृति, आहार, नृत्य आदि एक त्योहार के माध्यम से दुनिया के आगे रखें. इस क्रम में कोहिमा में किसामा नाम का एक गांव चुना गया जहां हर साल दिसंबर में एक बेहद शानदार आयोजन होता है जिसे दुनिया होर्न्बिल फेस्टिवल के नाम से जानती है. इस गांव में सभी 16 जनजातियों के मोरुंग या घर दिखाये गए हैं. उन घरों में इस फेस्टिवल के दौरान नागा परिवार रहते हैं और आये हुए पर्यटकों को अपने जीवन से रूबरू कराते हैं.
Liver Health: क्या आपको पता है खानपान के अलावा ये चीजें भी करती हैं लिवर को खराब?
Tips To Keep Roti Fresh: रोटी को रखना है एक दम ताजा, तो इन उपायों को आजमाएं
Rakhi Thali Decoration Ideas: सिम्पल थाली को बनाएं राखी के लिए खूबूसरत, यहां जानें बेस्ट डेकोरेशन आइडियाज
Raksha Bandhan Saree Design: रक्षाबंधन पर अपनाएं ये एलिगेंट साड़ी लुक्स, इन आइडियाज को करें ट्राई