आत्म-संदेह और हीनता की भावना आ जाती है
जब कोई इंसान खुद की तुलना दूसरों से करते हैं, तो वह हमेशा अपने को कमतर और दूसरों को महानता की कैटेगिरी में रख देते हैं. ओशो के अनुसार, यह धीरे-धीरे आत्मविश्वास को खा जाता है और वह व्यक्ति खुद से ही नफरत करने लगता है.
लगातार जलन और असंतोष की स्थिति
तुलना किसी भी इंसान को अंदर ही अंदर खा जाती है. उसे दूसरों की खुशियां चुभने लगती हैं. ओशो कहते हैं कि जलन एक ऐसा जहर है जो केवल आपको ही नुकसान पहुंचाता है, दूसरे को नहीं.
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कभी न खत्म होने वाली दौड़ और थकावट
ओशो कहते हैं कि “दूसरों से आगे निकलने की चाहत में इंसान अपने जीवन का सारा रस खो देता है.” प्रतियोगिता में डूबा व्यक्ति कभी शांति से नहीं बैठ सकता. उसे हमेशा लगता है कि कोई उससे आगे निकल रहा है, और वह खुद को लगातार दौड़ाता है. परिणाम ये होता है कि वह धीरे धीरे तनाव, चिंता और मानसिक थकावट का शिकार हो जाता है.
रचनात्मकता की मौत
तुलना और प्रतियोगिता व्यक्ति की मौलिकता और रचनात्मकता को नष्ट कर देती है. वह दूसरों की नकल में इतना डूब जाता है कि अपनी असल प्रतिभा को पहचान ही नहीं पाता. ओशो कहते हैं, “जैसे ही आप तुलना करना छोड़ते हैं, आपकी मौलिकता खिलने लगती है.”
रिश्तों में खटास और अकेलापन
जो इंसान हर किसी को प्रतियोगी मानता है, उसके रिश्तों में भरोसे की जगह शक और प्रतिस्पर्धा आ जाती है. ओशो के अनुसार, “जहां तुलना है, वहां प्रेम नहीं हो सकता.” ऐसे लोग धीरे-धीरे अकेले पड़ जाते हैं.
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