माता-पिता और गुरुजन
ओशो कहते हैं कि माता-पिता और गुरु हमारे जीवन की नींव होते हैं. वे निस्वार्थ भाव से हमें जीवन का रास्ता दिखाने के साथ साथ हमें पालते हैं और सही दिशा में ले जाते हैं. ऐसे लोगों को दुख पहुंचाना यानी अपने जीवन की जड़ों को कमजोर करना. जो व्यक्ति अपने माता-पिता और गुरुजनों का अनादर करता है, उसका जीवन परेशानियों से भर जाता है.
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निर्धन और असहाय लोगों को नहीं पहुंचाना चाहिए दुख
ओशो ने हमेशा करुणा और दया को सर्वोच्च धर्म माना. उनका कहना था कि गरीब, बीमार या असहाय लोगों को दुख देना आपके कर्मों पर काली छाया डालता है. इनकी बद्दुआ जीवन में परेशानियों और दुख को न्योता देती है. इसलिए ऐसे लोगों की हमेशा मदद करनी चाहिए. इससे जीवन में खुशियां और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है.
निर्दोष और मासूम जीवों का प्रताड़ित करना भी अपराध
ओशो मानते थे कि निर्दोष लोगों और मासूम जीवों पर जुल्म करना इंसानियत को कलंकित करना है. चाहे वो बच्चे हों, जानवर हों या कोई ऐसा व्यक्ति जो आपका कुछ बिगाड़ भी न सकता हो. ऐसे प्राणियों को दुख देना जीवन में अशांति और पछतावे का कारण बनता है.
सच्चे प्रेम करने वाले लोग
ओशो के अनुसार जो लोग सच्चे मन से आपसे प्रेम करते हैं उन्हें भी दुख नहीं पहुंचाना चाहिए. क्योंकि प्रेम जीवन का आधार है और जो लोग सच्चे प्रेम को ठुकराते हैं या उसके साथ छल करते हैं, वे अंततः अकेलापन और दुख ही पाते हैं.
क्यों जरूरी है इनसे अच्छा व्यवहार?
ओशो कहते थे कि जब आप दूसरों को दुख देंगे, तो वो दुख एक दिन लौटकर आपके जीवन में भी दस्तक देगा. इसलिए सच्चा सुख पाने के लिए जरूरी है कि आप अपने कर्मों को शुद्ध रखें और हर किसी के प्रति दया, प्रेम और सम्मान का भाव रखें.
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