सत्य तो यह है कि पंडित कुमार गंधर्व जी को याद करने का कोई विशेष प्रयास मुझे नहीं करना पड़ता है, क्योंकि उनका संगीत, उनकी अनूठी गायकी व मौलिक विचार मेरे जीवन व मेरी संगीत साधना का अभिन्न अंग कब के बन चुके हैं. उनकी जन्म शताब्दी पर जो आयोजन हो रहे हैं, लेख लिखे जा रहे हैं, गोष्ठी-चर्चा आदि आयोजित हो रहीं हैं, वह सब उचित भी है और निष्पक्ष रूप से आयोजित होने ही चाहिए, लेकिन जैसा मैं कह चुकी हूं, मेरी संगीत यात्रा में तो उनका स्वर, उनकी रचनाएं सदैव मेरे साथ ही हैं. फिर भी आपने विशेष स्मृति को उजागर करने का अनुरोध किया है तो बता दूं कि मेरा बचपन इलाहाबाद (तत्कालीन प्रयागराज) में बीता. शहर में कुछ ऐसे जानकार व संगीत प्रेमी थे, जो कुमार जी के गायन के भक्त भी थे और उनके मित्र भी. उनमें से एक श्री सत्येंद्र वर्मा जी, जो शहर के नामी गिरामी वकील रहे, प्रतिवर्ष अपने बंगले पर कुमार जी का गायन आयोजित करते थे. शहर के सभी संगीत प्रेमियों को खुला निमंत्रण था कि आयें और गायन का आनंद लें. हमारा पूरा परिवार यानी मां, पिताजी, मैं और मेरी छोटी बहन हर वर्ष इस कार्यक्रम को सुनते और प्रतीक्षा करते कि अगले वर्ष कुमार जी कब पधारेंगे.
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