लड़का है, इसलिए रोना नहीं चाहिए
बेटा भी इंसान है, उसके भी भावनाएं होती हैं. अगर वह दुखी है तो उसे रोने दें और समझाएं. भावनाएं दबाना नहीं, समझना सिखाएं. इससे वह मानसिक रूप से मजबूत बनेगा.
बेटों को कभी-कभी ज्यादा आजादी दे दी जाती है
बहुत से माता-पिता सोचते हैं कि बेटा है, उसे छूट देनी चाहिए. लेकिन जरूरत से ज्यादा आजादी कई बार गलत राह पर ले जाती है. बेटा हो या बेटी, सीमाएं और अनुशासन सभी के लिए जरूरी है.
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घर के कामों से दूर रखना
अक्सर बेटों को घर के काम सिखाए ही नहीं जाते. ये सोच गलत है कि ये सिर्फ लड़कियों का काम है. बेटे को भी साफ-सफाई, खाना बनाना जैसे जरूरी काम सिखाना चाहिए ताकि वो आत्मनिर्भर बन सके.
गुस्से या सख्ती से हर बात सिखाना
हर बात पर डांटना या मारना बेटे को डरपोक या गुस्सैल बना सकता है. प्यार और समझदारी से बात समझाना ज्यादा असरदार होता है. बच्चा बात सुनता है जब उसे समझाया जाए, न कि डराया जाए.
सिर्फ पढ़ाई पर जोर देना, व्यवहार न सिखाना
अगर बेटा होशियार है, तो भी अच्छे संस्कार और व्यवहार बहुत जरूरी हैं. सिर्फ मार्क्स नहीं, इंसानियत और सम्मान भी सिखाना जरूरी है. समाज में वही बच्चा आगे बढ़ता है जो विनम्र हो.
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तुलना करना
हर बच्चा अलग होता है. बेटे की तुलना दूसरों से करने से उसका आत्मविश्वास टूट सकता है. उसकी अच्छाइयों को पहचानें और उन्हें बढ़ावा दें.
‘मर्द बनो’ जैसे भारी शब्दों का दबाव न डालें
बेटों पर मर्दानगी का बोझ न डालें. उन्हें इंसान बनना सिखाएं, जो दयालु, समझदार और जिम्मेदार हो. जब वो अपनी असली पहचान को अपनाता है, तभी वह सच में मजबूत बनता है.
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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. प्रभात खबर इसकी पुष्टि नहीं करता है.