Premanand Ji Maharaj: इन जगहों पर चुप रहने में ही भलाई, मौन से मिलेगा जीवन में स्थिरता और शांति

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी की बातों में कोई जटिलता नहीं होती, वे जीवन की उलझनों को इतनी सहजता से सुलझा देते हैं कि सुनते ही दिल हल्का हो जाता है. उनकी बातें जीवन का मार्गदर्शन करती हैं.

By Shashank Baranwal | April 13, 2025 8:23 AM
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Premanand Ji Maharaj: वर्तमान समय में प्रेमानंद जी महाराज एक ऐसा नाम जो आज लाखों दिलों को सुकून देता है. उनकी उपस्थिति किसी आध्यात्मिक रोशनी की तरह है, जो जीवन के अंधेरों को रोशन कर देती है. भले ही अब उनके लिए परिचय देना जरूरी नहीं, लेकिन हर बार उनके शब्दों में कुछ ऐसा नया होता है जो आत्मा को गहराई से छू जाता है. सोशल मीडिया पर उनके विचारों की गूंज हर जगह सुनाई देती है. उनकी रील्स, उपदेश और सत्संग न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में रहने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी एक संजीवनी बन चुके हैं. प्रेमानंद जी की बातों में कोई जटिलता नहीं होती, वे जीवन की उलझनों को इतनी सहजता से सुलझा देते हैं कि सुनते ही दिल हल्का हो जाता है. उनकी बातें जीवन का मार्गदर्शन करती हैं. ऐसे में प्रेमानंद जी कुछ जगहों पर लोगों को मौन रहने के लिए कहते हैं, जो कि व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए काफी जरूरी होती है.

आध्यात्मिक शक्ति के लिए जरूरी

प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि जब हम हवन करते हैं, तो हमारा पूरा मन और चित्त प्रभु की भक्ति में एकाग्र होना चाहिए. उस समय की गई कोई भी व्यर्थ बातचीत न केवल ध्यान भंग करती है, बल्कि उस आध्यात्मिक शक्ति को भी कमजोर कर देती है, जो उस क्षण में हमारे आसपास होती है.

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शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी

प्रेमानंद जी महाराज का यह स्पष्ट संदेश है कि जब हम खाते हैं, तो हमारा सारा ध्यान उसी पर होना चाहिए. खाना सिर्फ स्वाद या पेट भरने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह शरीर को ऊर्जा देने वाली एक पवित्र प्रक्रिया है. उनका मानना था कि भोजन करते समय बात करना शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है. बातचीत करते समय सांस की नली खुली रहती है, और ऐसे में खाना निगलते समय खांसी या दम घुटने जैसी दिक्कतें हो सकती हैं. साथ ही, इससे पाचन तंत्र पर भी असर पड़ता है क्योंकि मन भटका हुआ होता है.

मन को एकाग्र करने के लिए जरूरी

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार जब हम माला जपते हैं, तो यह समय भगवान के ध्यान में पूर्ण रूप से डूबने का होता है. इस समय हमारी आत्मा और मन को पूरी तरह से एकाग्र होना चाहिए, जिससे हम उन पवित्र शब्दों के साथ सच्चे अर्थ में जुड़ सकें. अगर हम इस दौरान बात करने लगते हैं, तो हमारी मानसिक एकाग्रता टूट जाती है और जप का असर कम हो जाता है.

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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. प्रभात खबर किसी भी तरह से इनकी पुष्टि नहीं करता है.

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