महिला दिवस पर पढ़िए महिला सुरक्षाकर्मियों की हिम्मत की कहानी

अपनी पहचान बनाने और देश सेवा का जज्बा रखने के लिए कई चीजों का त्याग भी करना पड़ता है़ इन्हीं बातों को अपने जीवन में उतारते हुए महिला पुलिसकर्मी काम कर रही हैं. प्रतिदिन 10-12 घंटे की ड्यूटी के बाद चेहरे पर मुस्कान इसी जज्बे को दिखाता है. परिवार की जिम्मेदारी को संभालते हुए आम जनता की परेशानियों को दूर करने में जुटी हुई हैं. ऐसी ही महिला पुलिसकर्मियों की हिम्मत पर पढ़िए लता रानी/पूजा सिंह की रिपोर्ट

By SumitKumar Verma | March 8, 2020 8:33 AM
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अपनी पहचान बनाने और देश सेवा का जज्बा रखने के लिए कई चीजों का त्याग भी करना पड़ता है़ इन्हीं बातों को अपने जीवन में उतारते हुए महिला पुलिसकर्मी काम कर रही हैं. प्रतिदिन 10-12 घंटे की ड्यूटी के बाद चेहरे पर मुस्कान इसी जज्बे को दिखाता है. परिवार की जिम्मेदारी को संभालते हुए आम जनता की परेशानियों को दूर करने में जुटी हुई हैं. ऐसी ही महिला पुलिसकर्मियों की हिम्मत पर पढ़िए लता रानी/पूजा सिंह की रिपोर्ट.

प्रतिदिन 10-12 घंटे की ड्यूटी

जॉब और लाइफ को कर रहीं मैनेज

लोगों की सेवा ही पहला लक्ष्य

मुश्किल भरे रास्तों को बनाया आसान

हर चैलेंज से कर रहीं दो-दो हाथ

निर्मला देवी, ट्रैफिक महिला आरक्षी

जिस तरह से पुरुष को आगे बढ़ाने में महिलाओं का सहयोग रहता है़ उसी तरह से पुरुष भी महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है़ं इसी का उदाहरण हैं ट्रैफिक महिला आरक्षी निर्मला देवी. वर्तमान में कांके रोड स्थित राम मंदिर के समीप तैनात है़ं

वर्ष 2009 से ट्रैफिक पुलिस के रूप में योगदान दे रही हैं. वह कहती हैं : झारखंड पुलिस में आने की प्रेरणा पति पशुपति झा (होमगार्ड) से मिली. उन्होंने यहां तक पहुंचने में काफी सपोर्ट किया. प्रतिदिन 10-12 घंटे की ड्यूटी के बाद परिवार काे संभालना कठिन होता है, लेकिन कुछ समय परिवार के लिए जरूर रखती हूं. थाना, कंट्रोल रूम, पुलिस लाइन में तैनात होने के बाद अब ट्रैफिक में तैनात हूं. वह कहती हैं : नौकरी और लाइफ को मैनेज करते हुए आगे बढ़ रही हूं. प्रतिदिन घंटों खड़े रहने के बाद भी कभी थकान महसूस नहीं होती. मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे भी झारखंड पुलिस में आये़ लोगों की सेवा करें.

यशोधरा, साइबर डीएसपी

रांची की साइबर डीएसपी यशोधरा और उनकी टीम साइबर से जुड़े मामलों को सुलझाने में काफी मेहनत करती है. डीएसपी यशोधरा 2016 में झारखंड पुलिस में आयी. पहली पोस्टिंग जैप वन में थी. साथ ही उन्हें साइबर सेल के लिए भी प्रतिनियुक्त किया गया. इस दौरान साइबर क्राइम से जुड़े कई मामलों को सुलझाया. वह कहती हैं : एटीएम क्लोनिंग केस काफी कठिन रहा. इस केस में 20-25 लोगों के करीब 10 लाख रुपये निकाल लिये गये थे. आखिरकार मामले को सुलझाने में सफल रही. डीएसपी यशोधरा कहती हैं : मुझे पुलिस में ही आना था. इसलिए पीजी पूरा करने के बाद इस क्षेत्र को चुना. पहले प्रयास में सफलता मिली. छह भाई- बहनों में तीन भाई-बहन देश सेवा में जुटे है़ं

यहां तक पहुंचना मेरे लिए आसान नहीं था, लेकिन इसे चैलेंज के रूप में लिया. करियर के दौरान नौकरी और परिवार दोनों को महत्ता दी. हालांकि माता-पिता को थोड़ा कम समय दे पाती हूं.यहां तक पहुंचने में परिवार का हमेशा सहयोग मिला है़

मधुमिता, जैप वन सिपाही

जैप वन में सिपाही के पद पर तैनात मधुमिता 2009 से कार्यरत है़ं पति स्व. कुष्णा बहादुर क्षेत्री (सिपाही चालक) के देहांत के बाद पुलिस सेवा में आयी़ उनका आत्मविश्वास ही था कि हाउस वाइफ होते हुए पुलिस सर्विस में आयी़ संघर्ष भरे रास्तों पर अपने जीवन का सफर तय किया. बच्चों की परवरिश के लिए इस नौकरी को अनुकंपा के तौर पर स्वीकार किया़ मधुमिता कहती हैं : कम उम्र और हाउस वाइफ से सीधे पुलिस में आना मेरे लिए काफी कठिन भरा दौर था.

अभी तक उन्हें जैप वन से लेकर ट्रैफिक पुलिस के रूप में काम करने का अनुभव मिला है़ वह विश्वास का ही परिणाम था कि मेरे काम देखते हुए जैप वन एसोसिएशन की ओर से महिला प्रतिनिधि के रूप में पहली बार चयन हुआ. इस दौरान बच्चों को संभालना और नौकरी करना काफी कठिन रहा. जब नौकरी शुरू की तब बेटी साढ़े तीन साल और बेटा ढाई साल का था. उस समय इनको संभालते हुए ट्रेनिंग पूरी की. हर परिस्थिति का मुकाबला करते हुए जॉब कर रही हूं.

दयामनी नाग, मुंशी, गोंदा थाना

गोंदा थाना की मुंशी दयामनी नाग पिछले 10 वर्षों से पुलिस सेवा में लगी हुई है़ं पहली पोस्टिंग चतरा में मिली़ इसके बाद रांची पहुंची़ं दयामनी बताती हैं : इस नौकरी में आने के लिए परिवार से हमेशा सहयोग मिला. भैया और चाचा को देख कर उनसे प्रेरणा मिली की मुझे भी पुलिस सेवा में जाना है़

इस दौरान पढ़ाई पूरी की और ट्रेनिंग के लिए तैयारी की. पहले ही प्रयास में सफलता मिली. बचपन से ही पुलिस की वर्दी अच्छी लगती थी़ आखिरकार यह सपना पूरा हुआ़ वह कहती हैं : महिला जवान के रूप पर खुद पर गर्व महसूस करती हूं. मेरा मानना है कि किसी भी नौकरी में परिवार को संभालने में उतार-चढ़ाव आते हैं, इसके बावजूद महिलाएं परिवार व नौकरी दोनों अच्छी तरह से संभालती है़ं मेरे लिए ड्यूटी के साथ परिवार संभालना थोड़ा कठिन होता है लेकिन बच्चों के भविष्य संवारने के लिए सब कुछ मैनेज करना पड़ता है़

मनोरमा चौधरी, पुलिसकर्मी

मनोरमा पुलिस हेडक्वार्टर में पदास्थापित हैं. इनकी शादी 1993 में हुई़ 1996 में पति (पेशे से वकील) का देहांत हो गया. उस वक्त डेढ़ वर्ष का एक बेटा था. जबकि चार माह का गर्व मनोरम के पेट में पल रहा था.

ससुराल वालों से काेई सहयोग नहीं मिला. दोनों बेटों को पालने की बड़ी जिम्मेदारी सामने थी. मनोरमा कहती हैं : पति के देहांत के साथ ही संघर्ष शुरू हो गये, लेकिन हर संघर्ष का डट कर सामना किया. उस वक्त मायके का सहारा मिला. इसी दौरान 2008 में पुलिस विभाग (हेडक्वार्टर) में नौकरी लग गयी. कड़ी मेहनत और हिम्मत के साथ दोनों बेटे की परवरिश की. बड़ा बेटा एमबीए कर चुका है, जबकि छोटा बेटा कंप्यूटर इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा है.

मनाेरमा कहती हैं : पति के सपने को पूरा करने का प्रयास किया. दोनों बेटे को अच्छी परवरिश दे पायी. विपरीत परिस्थिति में घरवालों को अपनी बहू बेटियों का सहयोग करना चाहिए, ताकि उसे हिम्मत मिले.

कनकलता सोय, सब इंस्पेक्टर, महिला थाना

रांची महिला थाना प्रभारी कनकलता सोय कहती हैं : पुलिस की नौकरी बहुत चुनौती भरी होती है़ अपनी पुरी जिंदगी पुलिस सेवा में लगा दी़ मुरहू खूंटी की रहनेवाली कनकलता की पढ़ाई-लिखाई जमशेदपुर से हुई़ 1986 में बतौर कांस्टेबल जमशेदपुर में सेवा दी़ अब रिटायर की उम्र हो चुकी है़

नौकरी के साथ-साथ कड़ी मेहनत से तीन बच्चों की परवरिश की. दोनों बेटे जॉब कर रहे हैं. बेटी का भी घर बस चुका है. कनकलता कहती हैं : अभी तक रांची, देवघर, हजारीबाग, जमशेदपुर, चाईबास और लातेहार आदि जगहों पर योगदान दे चुकी हूं. हजारीबाग महिला थाना प्रभारी रहीं. रांची और जमशेदपुर में महिला थाना प्रभारी का पद संभाला. वह कहती हैं : कई बार ऐसे अपराधियों का सामना करना पड़ता है, जो एक महिला के लिए बहुत ही मुश्किल समय होता है. लेकिन हिम्मत हो, तो हर राह आसान हो जाती है.

शर्मिला, हवलदार

शर्मिला मुख्यालय में हवलदार के पद पर पदस्थापित हैं. वह शहीद विजय सोरेन की पहली पत्नी हैं. विजय सोरेन पुलवामा हमले में शहीद हो गये थे़ इनका एक बेटा है. शर्मिला ने 2004 में जैप-10 में आर्म पुलिस के रूप में जुड़ी़ पहली ज्वाइनिंग थी गोविंदपुर (धनबाद)में थी.

अभी मुख्यालय (नेपाल हाउस) में कार्यरत हैं. वह कहती हैं : पति विजय सोरेन ने जब दूसरी शादी की, तो उस वक्त बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ा. हालांकि मैंने उसी समय ठान लिया था कि अपने बेटे को अच्छी परवरिश दूंगी. इसलिए बेटे के लिए कड़ी मेहनत की. कभी हिम्मत नहीं हारी. पुलिस की नौकरी के लिए तैयारी शुरू की. इसमें सास-ससुर ने सहयोग किया. जब ड्यूटी पर रहती थी, तो बेटे को सास-ससुर संभालते थे. शर्मिला कहती हैं : पुलिस की नौकरी चुनाैतियों से भरी होती है. मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया. पति की काफी याद आती है. उनपर गर्व है़

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