भालुओं की बस्ती में मिलती है यह खास सब्जी, स्वाद और फायदा इतना कि मटन भी इसके आगे फेल

Rugda Benefits: झारखंड और बिहार के जंगलों में पाई जाने वाली रूगड़ा (भुटकी/पुट्टू) नामक जंगली सब्जी स्वाद, पोषण और लोकप्रियता के मामले में मटन को भी मात देती है. दीमक की मिट्टी और जली हुई राख में उगने वाली यह मशरूम प्रजाति भालुओं को भी खूब पसंद है. इस लेख में हम आपको इसके फायदे के बताएंगे.

By Sameer Oraon | July 9, 2025 9:57 PM
an image

Rugda Benefits: झारखंड, बिहार के जंगलों में एक ऐसी सब्जी पायी जाती है, जिसके स्वाद और पोषण के आगे मटन भी फेल हो जाए. खासकर आदिवासी लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं. क्योंकि इस समुदाय की थाली में इसका खास स्थान है. कभी कभी बाजार में इसकी डिमांड इतनी हो जाती है कि इसकी कीमत 800 रुपये तक पहुंच जाती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं रूगड़ा की. जिसे कई जगह भुटकी या तो कई जगह इसे पुट्टू के नाम से जानते हैं.

दीमक की मिट्टी और जंगल की राख में उगती है ‘ब्लैक गोल्ड’

रूगड़ा या भुटकी दरअसल मशरूम की ही एक खास प्रजाति है, जो बरसात के मौसम में दीमक के टीलों और मिट्टी में प्राकृतिक रूप से उगती है. जंगल की आग बुझने के बाद जो काली मिट्टी बचती है, उसी में यह सब्जी सिर उठाती है. यही वजह है कि इसका रंग बाहर से काला होता है. हालांकि कई जगह पर सफेट रंग का भी देखने को मिल जाता है. हालांकि काला होने के बाद जब इसे धोया जाता है तो यह सफेद हो जाता है. फिर दिखने में आम यह मशरूम के जैसा ही लगता है.

Also Read: Hung Curd Sandwich Recipe: स्कूल में टिफिन खोलते ही खुश हो जाएंगे बच्चे, इस तरह मिनटों में उनके लिए बनाएं हंग कर्ड सैंडविच

भालू भी हैं इसके दीवाने!

न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार भालू का भी यह बेहद पसंदीदा व्यंजन है. रिपोर्ट में बताया गया है कि वाल्मीकिनगर जंगल और पश्चिम चंपारण के वन क्षेत्रों में रहने वालों की मानें तो भालू अक्सर अपनी गुफाएं रूगड़ा (भुटकी) वाले इलाके के पास ही बनाते हैं. यानी यह सब्जी इंसानों के साथ-साथ वन्यजीवों की भी पसंदीदा है.

स्वाद में मटन, गुणों में अमृत

जो लोग रूगड़ा या भुटकी खा चुके हैं, उनका कहना है कि इसका स्वाद ठीक मटन जैसा लगता है. कई लोग इसे मटन से अधिक फायदेमंद मानते हैं. क्योंकि इसमें उच्च प्रोटीन, फाइबर, पाचन में सहायक होने के साथ साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले पोषक तत्व भी पाये जाते हैं.

मांग तो बहुत है, लेकिन मिलता मुश्किल से

खास बात ये है कि यह मानसून के शुरुआत में ही मिलता है. क्योंकि इसकी उपलब्धता पर्यावरण और जंगलों पर भी निर्भर करती है. लंबे समय तक नहीं मिलने के कारण इसे खाने के शौकीन लोग मार्केट में आते ही हाथों-हाथ खरीद लेते हैं.

Also Read: Paneer Samosa Recipe: हर बाइट में स्वाद और कुरकुरापन का जादू, इस तरह घर पर बनाएं पनीर समोसा

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

Life and Style

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version