क्या होता है अर्घा?
अर्घा, शिवलिंग का वह हिस्सा होता है जिससे जल बाहर निकलता है. जब हम शिवलिंग पर जल या पंचामृत चढ़ाते हैं, तो वह अर्घा के माध्यम से निकलता है. वास्तु और धर्मशास्त्र के अनुसार, यह केवल जल की निकासी द्वार नहीं होता है बल्कि एक पॉजिटिव एनर्जी का रास्ता भी होता है.
Also Read: Vastu Tips: भगवान की तस्वीर लगाने से पहले जान लें ये वास्तु नियम, वरना हो सकता है नुकसान
अर्घा की दिशा क्या होनी चाहिए?
धार्मिक मान्यता और वास्तुशास्त्र की मानें तो, शिवलिंग का अर्घा उत्तर दिशा में होना चाहिए. अगर उत्तर दिशा संभव न हो, तो पूर्व दिशा में भी अर्घा को रखा जा सकता है. दक्षिण दिशा में अर्घा कभी नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह अशुभ फल देता है.
उत्तर दिशा को क्यों माना गया है बेस्ट ?
उत्तर दिशा को धन और सकारात्मक ऊर्जा की दिशा माना गया है. इस दिशा में अर्घा रखने से जल के साथ नकारात्मक ऊर्जा का भी निष्कासन होता है.
शास्त्रों में भी है उल्लेख
वास्तु शास्त्र में स्पष्ट कहा गया है कि अर्घा उत्तर की ओर हो तो भगवान शिव की कृपा जल्दी मिलती है. इसके अलावा उत्तर दिशा को वायव्यमंडल की ठंडी दिशा माना गया है, जहां जल का प्रवाह शुभ फल देता है और मानसिक शांति प्रदान करता है.
दक्षिण दिशा में क्यों नहीं होना चाहिए शिवलिंग का अर्घा?
दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है, जो मृत्यु और नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है. अगर इस दिशा में अर्घा रख दिया गया तो परिवार में मानसिक तनाव, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के साथ साथ भारी नुकसान भी झेलना पड़ सकता है. शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिशा में बहता जल शिव की कृपा लेने से बाधित कर सकता है.
घर में शिवलिंग स्थापित करते समय इन बातों का रखें ध्यान
- शिवलिंग बहुत बड़ा नहीं होना चाहिए.
- घर में पूजा योग्य शिवलिंग अंगूठे के आकार या उससे छोटा ही होना चाहिए.
- शिवलिंग की स्थापना उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए
- जल अर्पण करने के बाद उसे साफ कपड़े से पोंछना न भूलें.
- शिवलिंग के पास कभी भी तुलसी नहीं रखना चाहिए.
Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर बेस्ड है. प्रभात खबर किसी भी तरह से इनकी पुष्टि नहीं करता है.
Also Read: Vastu Tips: कंगाली और गरीबी का कारण बनती है घर में खुली रखी ये चीजें, दाने-दाने के लिए तरसता है इंसान