Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाला अद्भुत ज्ञान का स्रोत है. इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, वह आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. गीता में मनुष्य के भीतर छिपे छह शत्रुओं का उल्लेख किया गया है – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य. यह छह विकार न केवल आत्मा को कलुषित करते हैं, बल्कि मोक्ष के मार्ग में भी सबसे बड़ी बाधा बनते हैं.
Six Enemies of Human in Bhagavad Gita: गीता के अनुसार इन छह शत्रुओं को कैसे किया जा सकता है वश में
1. काम
श्रीमद्भगवद्गीता कहती है कि इच्छाएं जितनी पूरी की जाएं, उतनी ही और जन्म लेती हैं. काम वासना या भोग की अधिक इच्छा मनुष्य को अंधा बना देती है. जब व्यक्ति हर चीज को पाने की लालसा में फंसता है, तब वह अपने धर्म, कर्तव्य और आत्मा की शुद्धता से भटक जाता है. इच्छाओं पर नियंत्रण से ही सच्ची शांति प्राप्त होती है.
2. क्रोध
जब इच्छाएं पूरी नहीं होतीं तो उत्पन्न होता है क्रोध. गीता में कहा गया है कि क्रोध से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश से विवेक समाप्त हो जाता है. क्रोध मनुष्य को अपने कर्मों से दूर ले जाता है और उसे पाप के रास्ते पर चलने को मजबूर कर देता है.
3. लोभ
लोभ कभी संतुष्ट नहीं होता. अधिक पाने की लालसा ही लोभ है. गीता में बताया गया है कि लोभी व्यक्ति कभी सच्चे संतोष और आनंद का अनुभव नहीं कर सकता. लोभ उसे हमेशा अस्थिर और असंतुलित बनाए रखता है.
4. मोह
मोह का अर्थ है किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति के प्रति अत्यधिक आसक्ति. मोह में फंसा व्यक्ति अपने कर्तव्य और आत्मा की दिशा भूल जाता है. गीता कहती है कि मोह त्याग के बिना आत्मज्ञान नहीं प्राप्त किया जा सकता.
5. मद
जब मनुष्य को अपनी शक्ति, ज्ञान, सौंदर्य या पद का अभिमान हो जाता है, तो वह मद के वश में आ जाता है. अहंकार व्यक्ति को विनम्रता और भक्ति से दूर करता है. गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि अहंकार का त्याग ही आत्मा की सच्ची उन्नति है.
6. मात्सर्य
मात्सर्य यानी दूसरों की सफलता से जलना. यह विकार व्यक्ति को अंदर से खोखला कर देता है. गीता में बताया गया है कि ईर्ष्या करने वाला न स्वयं खुश रह सकता है और न ही दूसरों की खुशी सह सकता है.
How to Control Six Enemies of Human: इन शत्रुओं पर नियंत्रण कैसे करें?
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जो व्यक्ति इन छह आंतरिक शत्रुओं पर नियंत्रण पा लेता है, वह न पाप में लिप्त होता है और न ही जन्म-मरण के चक्र में फंसता है. ऐसा व्यक्ति आत्मज्ञानी बनकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है. ध्यान, योग, सत्संग और आत्ममंथन से इन विकारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है.
श्रीमद्भगवद्गीता हमें सिखाती है कि मुक्ति केवल पूजा-पाठ से नहीं, बल्कि इन आंतरिक शत्रुओं पर विजय से मिलती है. यदि हम इन छह विकारों को वश में कर लें, तो जीवन में न केवल शांति और संतोष मिलेगा, बल्कि आत्मा को भी परम शांति- यानी मोक्ष की प्राप्ति होगी.
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