नींद की गुणवत्ता और पैटर्न में भारी गिरावट
ऑक्सफॉर्ड एकेडमिक की एक रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन को रोकती है, जिससे नींद आने में देर होती है. जिससे साइक्लिंग स्लीप बाधित होती है. इससे नींद की गहराई और समय अवधि दोनों प्रभावित होती है.
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मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में गिरावट
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक रिपोर्ट के अनुसार रात के समय में फोन लगातार चलाने से तनाव और डिप्रेशन बढ़ता है. रिपोर्ट्स की मानें तो यह स्थिति खासतौर पर युवा वर्ग में अधिक देखी गई है. इससे न सिर्फ तनाव और डिप्रेशन बढ़ता है बल्कि याददाश्त शक्ति भी कमजोर हो जाती है.
मस्तिष्क की ग्रे मैटर वॉल्यूम कम होती है
स्टैनफोर्ड सेंटर ऑन लॉन्जीविटी के मुताबिक देर रात स्क्रीन के पास टाइम बिताने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क पर ग्रे मैटर वॉल्यूम कम होती है. जिससे याददाश्त और सीखने की क्षमता को कम हो जाती है.
दिनचर्या और सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव
क्लीवलैंड क्लिनिक की एक मेडिकल रिपोर्ट की मानें तो इससे न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है. क्योंकि रिपोर्ट में कहा गया है कि नींद कम होने से वजन बढ़ सकता है और ब्लड शुगर नियंत्रित नहीं हो पाता है. इसके अलावा उम्र के बढ़ने के साथ हृदय रोग का खतरा भी बढ़ जाता है.
सोने से पहले क्या करें
- सोने से कम से कम 1 घंटे पहले अपना मोबाइल जरूर बंद कर दें.
- मोबाइल फोन के स्क्रीन को डिम करें या नाइट मोड का प्रयोग करें
- सोने से पहले गुनगुना पानी पियें और बिस्तर पर लेटे लेटे किताब पढ़ें, इससे नींद जल्दी आएगी और मन शांत होगा.
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