Tourism: एडवेंचर ट्रिप पर जाने का हो मन तो जाएं यहां, भारत का सबसे पुराना है स्कींग डेस्टिनेशन

भारत का सबसे पुराना स्कींग डेस्टिनेशन है और समुद्र तल से लगभग नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. नारकंडा जाने के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 4, 2022 2:12 PM
an image

Tourism: एडवेंचर ट्रिप पर जाने का मन हो या प्रकृति की खूबसूरती से सराबोर होने की चाह, हिमाचल में शिमला से आगे नारकंडा जाने का प्लान अवश्य बनायें. यह भारत का सबसे पुराना स्कींग डेस्टिनेशन है और समुद्र तल से लगभग नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. नारकंडा जाने के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है. दिल्ली से कालका तक ट्रेन और वहां से कैब. कालका से नारकंडा में पहुंचने में करीब छह घंटे लगते हैं. यह छोटा सा हिल स्टेशन आकाश को चूमती तथा पाताल तक गहरी पहाड़ियों के बीच घिरा हुआ है. ऊंचे रई, कैल व तोश के पेड़ों की ठंडी हवा शांत वातावरण में रस घोलती रहती है. सुबह जब नींद खुली, तो लगा मानो सूरज की रोशनी के छोटे-छोटे कतरे बादलों की कोख से झांक रहे थे. वहां सेबों के बगीचे ही बगीचे हैं. यह देख हैरानी हुई कि सेब सड़कों पर यूं ही बिखरे हुए थे.

यहां स्थित हाटू पीक देखने अवश्य जाएं. वह नारकंडा में सबसे उंचाई पर स्थित जगह है. वहां हाटू माता का मंदिर है. नारकंडा नेशनल हाइवे 22 पर है और नारकंडा को पार कर थोड़ी ही दूर पर एक रास्ता कटता है, जो हाटू पीक को जाता है. सड़क की चौड़ाई इतनी ही है कि इस पर एक छोटी कार या एसयूवी के सामने अगर बाइक भी आ जाए, तो निकलना मुश्किल है. आधे रास्ते में एक छोटी सी झील बना दी गयी है, जहां पास ही एक-दो खोखे बनाये हुए हैं चाय वालों ने. सुबह ठंड ने कोहरे की चादर बिछा रखी थी,पर वहां से हिमालय की चोटियां नजर आ रही थीं. यह स्थान लंका से काफी दूर है, लेकिन कहा जाता है कि मंदोदरी हाटू माता की भक्त थी. उसने ही यह मंदिर बनवाया था और वह यहां प्रतिदिन पूजा के लिए आती थी. पूरी तरह लकड़ी से बना है यह मंदिर तथा आसपास देवदार के पेड़ सुंदरता को और बढ़ा देते हैं. हाटू मंदिर से कोई 500 मीटर की दूरी पर हैं तीन बड़ी चट्टानें. कहा जाता है कि यह भीम का चूल्हा है. अपने अज्ञातवास के समय पांडव यहीं आकर रहे थे और इसी चूल्हे पर खाना बनाया करते थे. तो अनायास ही मन में ख्याल आया कि तब खाना कितनी मात्रा में बनता होगा, कितने बड़े-बड़े बर्तन होते होंगे और कितनी सामग्री लगती होगी.

महामाया मंदिर देवी काली का मंदिर है, इसे शाही महल के अंदर सुंदरनगर के राजा ने बनवाया था और इसकी स्थापत्य शैली एक किले के समान है. समुद्र स्तर से 1810 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मंदिर के प्रवेश द्वार पर चांदी, लकड़ी और एल्यूमीनियम शीट का प्रयोग किया गया है. यहां लोग मेडीटेशन भी करते हैं. अगले दिन कोटगढ़ और ठानेधार पहुंची, जो सेब के बगीचों के लिए प्रसिद्ध हैं. कोटगढ़ और ठानेधार नारकंडा से 17 किलो मीटर की दूरी पर समुद्र स्तर से 1830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं. कोटगढ़ सतलुज नदी के बायें किनारे पर स्थित है, अपने यू आकार के लिए प्रसिद्ध एक प्राचीन घाटी है, जबकि ठानेधार सेब के बगीचों के लिए लोकप्रिय है. कोटगढ़ घाटी से आगंतुक कुल्लू घाटी और बर्फ से ढके शक्तिशाली हिमालय के पहाड़ों के शानदार दृश्य का आनंद ले सकते हैं. ठानेधार में स्थित प्रसिद्ध स्टोक्स फार्म, सैमुअल स्टोक्स, एक अमेरिकी, द्वारा शुरू किया गया, जो भारतीय दर्शन से गहराई से प्रभावित होकर 1904 में भारत आये थे. गर्मियों में जब वह शिमला गये, तो वहां के प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत हो गये और फिर कोटगढ़ में ही बस गये. उन्होंने सेब का बगीचा लगाया, जो जल्दी ही अपने रेड, गोल्डन और रॉयल डिलीशियस सेबों के लिए मशहूर हो गया.

नारकंडा का बाजार इतना ही है कि जितनी कि एक सड़क. छोटी-छोटी दुकानें बनी हैं, जिनमें मसालेदार सस्ते छोले पूरी से लेकर कीटनाशक तक मिलते हैं, जिन्हें सेब के बगीचों के मालिक खरीद कर ले जाते हैं. खास बात यह है कि आप यहां के सेब के बगानों के मालिकों की इजाजत से सेब को पेड़ से तोड़कर चख भी सकते हैं. एक सेब के बगीचे के मालिक से हमने सेब की पेटियां खरीदीं. बस बाजार के मध्य में स्थित काली मंदिर के आसपास रंग बिरंगे वस्त्र पहने गांवों की महिलाएं अपने-अपने गंतव्य जाने के लिए आमतौर पर बसों का इंतजार करती हुई नजर आती हैं. काली मंदिर के ठीक पीछे छोटी पहाड़ी पर कुछ तिब्बती परिवार भी रहते हैं, जो यहां दुकानदारी तथा अन्य धंधों में लगे हुए हैं. स्कूल आते-जाते प्यारे बच्चे पर्यटकों को देख मुस्करा उठते हैं. उन्हें देखकर लगता है, मानो उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान बिखरी रहती है.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version