Kailash Mansarovar Yatra 2025 : कैलाश पर्वत को ‘ब्रह्मांड का केंद्र’ माना जाता है. सदियों से लोग इस पवित्र शिखर के दर्शन करने करने के लिए यह कठिन यात्रा करते रहे हैं. चीन की स्वायत्तता वाले तिब्बत में स्थित कैलाश मानसरोवर की यात्रा बेशक सबसे के लिए संभव नहीं, पर असंभव भी नहीं है. दृढ़ इच्छा शक्ति, बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य और भारतीय विदेश मंत्रालय का सहयोग हो, तो आप कैलाश मानसरोवर की यात्रा को साकार कर सकते हैं.
कैलाश एक पवित्र पर्वत
दुनिया के चार प्रमुख धर्मों हिंदू, बौद्ध, जैन और बॉन धर्म (तिब्बत का एक प्राचीन स्वदेशी धर्म) के अनुयायियों के लिए कैलाश मानसरोवर एक बेहद पवित्र स्थान है.
हिंदू धर्म : ऐसा विश्वास है कि भगवान शंकर, माता पार्वती और अपने परिवार के साथ कैलाश पर निवास करते हैं. वेदों और उपनिषदों में कैलाश पर्वत को आध्यात्मिक ज्ञान के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है और इसे भगवान शिव का निवास स्थान बताया गया है, जहां वे शाश्वत ध्यान में रहते हैं.
जैन धर्म : जैन मान्यताओं में कैलाश पर्वत को अष्टपद पर्वत के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं जैन धर्म के संस्थापक ऋषभ देव ने यहीं तप किया था और यहीं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी.
बौद्ध धर्म : बौद्ध धर्मावलंबी कैलाश पर्वत को ज्ञान और करुणा के प्रतीक मंत्र ‘ओम मणि पद्मे हुं’ मंत्र का केंद्र मानते हैं. इसे मेरु पर्वत (पृथ्वी का केंद्र) कहते हैं और वज्रयान में वे इसे बुद्ध चक्रसंवर (डेमचोक) का घर मानते हैं.
बोन धर्म : शुरुआती तिब्बतियों के लिए जो बोनपो थे, यह क्षेत्र उस स्थान का प्रतिनिधित्व करता था, जहां उनकी परंपरा के संस्थापक शेनराब मिवोचे का जन्म हुआ था और उन्होंने शिक्षाएं दी थीं.
आज तक कोई नहीं चढ़ पाया कैलाश पर्वत पर
कैलाश पर्वत की लोग चारों ओर परिक्रमा करते हैं , लेकिन आज तक कोई इस पर्वत पर चढ़ नहीं सका है. इसकी ऊंचाई माउंट एवरेस्ट से कम है. एवरेस्ट की ऊंचाई 8,848.86 मीटर है, वहीं कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6,638 है. वैज्ञानिकों का मानना है कैलाश पर्वत पर मैग्नेटिक फील्ड ज्यादा सक्रिय है, यही कारण है कि इसका वातावरण अन्य किसी स्थान के वातावरण से अलग प्रतीत होता है और यही इसकी चढ़ाई को और भी मुश्किल बना देता है. कहते हैं कि सन् 1928 में एक बौद्ध भिक्षु मिलारेपा ही कैलाश पर्वत की तलहटी में जाने और उस पर चढ़ने में सफल रहे थे.
शुरू होने जा रही है कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025
भारत के विदेश मंत्रालय (एमईए) की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 के लिए कंप्यूटरीकृत ड्रा के माध्यम से 750 तीर्थयात्रियों का चयन किया गया है. जून की 30 तारीख को दिल्ली में 250 लोगों के दल के साथ यात्रा शुरू होगी, जिन्हें 50-50 भक्तों के 5 समूहों में विभाजित किया जायेगा. 22 दिनों की इस यात्रा की शुरुआत दिल्ली से होगी और समाप्ति भी. पहला समूह 10 जुलाई को लिपुलेख दर्रे के रास्ते चीन में प्रवेश करेगा. अंतिम समूह 22 अगस्त को भारत लौटेगा.
एशिया की सबसे ऊंची मीठे पानी की झील है यहां
मानसरोवर झील उस त्रि-जंक्शन के ठीक उत्तर में है, जहां चीन, भारत और नेपाल की सीमाएं मिलती हैं. खारे तिब्बती पठार पर 4,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित – एक ऐसा क्षेत्र जहां ऊंची-ऊंची झीलें हैं, मानसरोवर एशिया की सबसे ऊंची मीठे पानी की झील है. साफ मौसम वाले दिनों में इस पवित्र झील को नेपाल की लिमी घाटी से लैपचा ला दर्रे के जरिये भी देखा जा सकता है. इस झील का आकार गोल है और अधिकतम गहराई लगभग 100 मीटर (330 फीट) एवं परिधि लगभग 88 किलोमीटर है.
कैलाश जाने के हैं भारत से दो रास्ते
भारत से कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए दो प्रचलित रास्ते हैं, जिनमें से एक उत्तराखंड से और दूसरा सिक्किम से है.
मार्ग 1 : लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), यात्रा समय- लगभग 22 दिन
दिल्ली
गजरौला
रुद्रपुर
टनकपुर
पिथौरागढ़
धारचूला
तवाघाट
गुंजी
नाभीढांग
लिपुलेख पास
तिब्बत क्षेत्र में प्रवेश
मार्ग 2 : नाथुला दर्रा (सिक्किम), यात्रा समय- लगभग 21 दिन.
नयी दिल्ली
बागडोगरा/सिलीगुडी
गंगटोक
15वां मील
18वां मील
शेराथांग
नाथुला पास
तिब्बत क्षेत्र में प्रवेश
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वेबसाइट, जो देगी पुख्ता जानकारी
विदेश मंत्रालय की ओर कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए वेबसाइट https://kmy.gov.in/ संचालित की जाती है. आप इस वेबसाइट के माध्यम से यात्रा से संबंधित प्रामाणिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
- भारत का विदेश मंत्रालय हर साल जून से सितंबर के दौरान दो अलग-अलग मार्गों – लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) के माध्यम से कैलाश मानसरोवर यात्रा का आयोजन करता है.
- कोविड-19 और बाद में भारत-चीन संबंधों के कारण 2020 से यह यात्रा आयोजित नहीं की गयी थी.
- भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार कोई भी निजी संस्था लिपुलेख दर्रा और नाथुला से कैलाश मानसरोवर यात्रा को आयोजित नहीं कराती है.
- उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रा से यात्रा का अनुमानित खर्च 1 लाख 74 हजार रुपये है.
- नाथुला दर्रे से से यात्रा का अनुमानित खर्च 2 लाख 83 हजार रुपये बताया जाता है.
- यह यात्रा उत्तराखंड, दिल्ली और सिक्किम राज्य की सरकारों और भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के सहयोग से आयोजित की जाती है.
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