मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों ने 1567 में चित्तौड़गढ़ के अस्त होने के बाद उदयपुर जैसा खूबसूरत शहरबसाया था. राणा उदय सिंह ने 16वीं सदी में उदयपुर की खोज की थी. इस शहर को सूर्योदय का शहर कहा जाता है. पहाड़ों से घिरा हुआ यह शहर एक पर्वत शृंखला पर स्थित है, जिसके शीर्ष पर महाराणा का महल है, जो वर्ष 1570 में बनना आरंभ हुआ था.
झीलों की नगरी के रूप में विश्व प्रसिद्ध उदयपुर
राजस्थान का उदयपुर शहर झीलों की नगरी के रूप में विश्व प्रसिद्ध है. यहां पिछोला, फतेह सागर, उदय सागर और रंग सागर नामक चार झीलें हैं. खास बात है कि चारों झीलें एक नहर से आपस में जुड़ी हैं. सामने एक ओर ऊंचे पहाड़ पर मानसून पैलेस है, तो दूसरी ओर नीमच माता का मंदिर. पानी से लबालब झीलें गर्मियों में भी ठंडक का एहसास कराती हैं. पहाड़ों से झीलों का नजारा ऐसा दिखता है, जैसे जन्नत के किसी कोने से कुछ देखा जा रहा हो. सड़कों पर यातायात और भीड़भाड़ नगण्य है, इसलिए अधिक गर्मी महसूस नहीं होती.
चित्तौड़गढ़ के अस्त के बाद उदयपुर का शहर बना
उल्लेखनीय है कि मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों ने 1567 में चित्तौड़गढ़ के अस्त होने के बाद उदयपुर जैसा खूबसूरत शहर बसाया था. राणा उदय सिंह ने 16वीं सदी में उदयपुर की खोज की थी. इस शहर को सूर्योदय का शहर कहा जाता है. पहाड़ों से घिरा हुआ यह शहर एक पर्वत शृंखला पर स्थित है, जिसके शीर्ष पर महाराणा का महल है, जो वर्ष 1570 में बनना आरंभ हुआ था. उदयपुर के पश्चिम में पिछोला झील है, जिस पर दो छोटे द्वीप और संगमरमर से बने महल भी हैं. यह नगर समुद्र तल से लगभग दो हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और जंगलों से घिरा हुआ है. हरे-भरे पेड़ों से आच्छादित इस नगर की साफ-सुथरी और चौड़ी सड़कों पर घूमने का अपना ही आनंद है.
जगदीश मंदिर सबसे बड़ा एवं भव्य मंदिर है
इस खूबसूरत शहर में सफेद संगमरमर के महल एवं कई प्राचीन मंदिर है. जगदीश मंदिर यहां का सबसे बड़ा एवं भव्य मंदिर है. यहां जगन्नाथ अथवा विष्णु की मूर्ति की पूजा होती है. वहीं फतेह सागर झील यहां का मुख्य आकर्षण है. चार एकड़ में फैला हुआ नेहरू उद्यान भी है. यहां नौका द्वारा पहुंचने की व्यवस्था है. रंगीन फव्वारों से सज्जित यह उद्यान पर्यटकों का पसंदीदा है. सिटी पैलेस झील के पूर्वी किनारे पर स्थित है. झील के अंदर लेक पैलेस होटल, जग मंदिर और मोहन मंदिर स्थित है. पिछोला झील से पृथक हिस्सा दूध मलाई, माचला मंदिर, पहाड़ी के ढलान पर स्थापित माणिक्य लाल वर्मा उद्यान और पहाड़ी की चोटी पर करणी माता मंदिर भी देखने योग्य है.
भारतीय लोक कला नृत्य का अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय
यहां भारतीय लोक कला नृत्य का अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय है. यहां अरावली वाटिका भी एक दर्शनीय मनोरम स्थल है, जो झील के किनारे बहुत लंबी पहाड़ी पर फैली हुई है. उसी से लगा महाराणा प्रताप स्मारक है. यह स्मारक फतेह सागर झील के पूर्व में मोती मगरी पहाड़ी पर स्थित है. इस पहाड़ी की चोटी पर महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा उनके विश्वासपात्र घोड़े चेतक के साथ स्थापित है. इसके थोड़े नीचे वीर भवन संग्रहालय है. इसमें महाराणा प्रताप की पूरी जीवनी आदमकद सुरम्य चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित की गयी है. नीचे के तल में हल्दी घाटी युद्ध तथा चित्तौडगढ़ किले का मॉडल प्रदर्शित है और इसके मध्य भाग में उस वक्त युद्ध में प्रयुक्त हथियार रखे गये हैं.
किला सज्जनगढ़ को देखे बिना उदयपुर का भ्रमण अधूरा
सहेलियों की बाड़ी, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह पहले राजकुमारियां एवं उनकी सहेलियों का मनोरंजन स्थल था. यहां सफेद संगमरमर के हाथी तथा भव्य ऊंचे फव्वारों का अपना ही आकर्षण है. इसके अतिरिक्त उदयपुर से पांच किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर सबसे ऊंची ढलान वाली पहाड़ी पर 152 मीटर की ऊंचाई पर खड़ा एक मजबूत किला सज्जनगढ़ को देखे बिना उदयपुर का भ्रमण अधूरा ही रहेगा. शहर में घूमने के लिए ऑटो रिक्शा सबसे बढ़िया साधन है. हवाई, बस और रेल मार्ग से जुड़े होने के कारण किसी प्रकार की कोई कठिनाई यहां पहुंचने में नहीं होती. ठहरने के लिए यहां हर स्तर के होटल तथा धर्मशाला उपलब्ध हैं. (देवेंद्रराज सुथार, टिप्पणीकार)
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