वर्षिल ने कहा, ‘‘मैंने उच्च अंक हासिल किये, लेकिन मैं उस आम रास्ते पर नहीं चलना चाहता, जहां लोग पैसे वाले पेशों के पीछे भागते हैं. मेरा लक्ष्य आंतरिक शांति और प्रसन्नता हासिल करना है. यह तभी संभव है, जब मैं सब कुछ छोड़ कर जैन संत बन जाऊं.’ वर्षिल ने कहा कि उनका परिवार उनके फैसले के साथ है. वह गुरुवार को सूरत में एक भव्य समारोह में दीक्षा हासिल करेंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने बचपन से वास्तविक खुशी के बारे में बहुत सोचता था. फिर मैं अपने गुरु कल्याण रत्न विजयजी महाराज से मिला, जिन्होंने मुझे जैन धर्म की बारीकियों के बारे में और एक खुश, सार्थक जीवन के अन्य पहलुओं के बारे में समझाया.’ वर्षिल ने कहा, ‘‘मनुष्य के लालच का कोई अंत नहीं है. हजारों रुपये जिनके पास हैं, वो लाखों कमाना चाहते हैं और लाखों वाले करोड़ों. इसका कोई अंत नहीं है. लेकिन, वो जैन संत इन लोगों से अधिक प्रसन्न हैं, जिनके पास आंतरिक शांति और ज्ञान के अलावा कुछ नहीं है.’