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इस बीच, पीठ ने सभी हाईकोर्ट से कहा कि लोया की मृत्यु के संबंध में दायर किसी भी याचिका पर वे विचार नहीं करें. इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पीठ उस समय नाराज हो गयी, जब बंबई लाॅयर्स एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का नाम लेते हुए आरोप लगाया कि सब कुछ उन्हें (शाह) को बचाने के लिए किया गया है.
इसी एसोसिएशन ने बंबई हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के कड़े प्रतिवाद पर विचार के दौरान ही पीठ ने इस पर कड़ी आपत्ति करते हुए कहा, ‘आज की स्थिति के अनुसार यह स्वाभाविक मृत्यु है. फिर आक्षेप मत लगाइये.’ सुनवाई के दौरान एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने संभावित भावी आदेश का निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि शीर्ष अदालत इस मामले में मीडिया पर अंकुश लगा सकता है. इस पर चीफ जस्टिस ने नाराजगी वयक्त की. कहा, ‘मेरे प्रति यह न्याय संगत नहीं है. आप ऐसा नहीं कर सकतीं.’ इसके साथ ही उन्होंने इंदिरा जयसिंह से कहा कि वह अपने शब्द वापस लें और इसके लिए माफी मांगें. इंदिरा जयसिंह ने अपना बयान वापस लेने के साथ ही क्षमा याचना कर ली.
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इससे पहले, जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इन याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था और कहा कि इन्हें उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाये. ये याचिकाएं कांग्रेस के तहसीन पूनावाला और महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोने ने दायर की हैं. इस आदेश के बाद ही दोनों याचिकाएं सोमवार को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुई थीं.
क्या है जज लोया मामला
विशेष सीबीआईजज बीएच लोया की एक दिसंबर, 2014 को उस समय अचानक हृदयगति रुक जाने से मृत्यु हो गयी थी, जब वह अपने एक सहयोगीजज कीबेटी के विवाह में शामिल होने गये थे. शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम जजों जस्टिस जे चेलामेश्वर,जस्टिस रंजन गोगोई,जस्टिस मदन बी लोकूर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने 12 जनवरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिन विषयों को उठाया था, उसमें लोया का मामला भी शामिल था.