राजीव गांधी हत्याकांड : सुप्रीम कोर्ट से दोषी एजी पेरारिवलन ने मौत की सजा वापस लेने की मांग की

नयी दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के सिलसिले में दोषी करार दिये गए लोगों में से एक ने सर्वोच्च न्ययालय में याचिका दायर कर शीर्ष अदालत के मई 1999 के उस फैसले को वापस लेने की मांग की है जिसके तहत उसे दोषी करार दिया गया था. उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 24, 2018 2:16 PM
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नयी दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के सिलसिले में दोषी करार दिये गए लोगों में से एक ने सर्वोच्च न्ययालय में याचिका दायर कर शीर्ष अदालत के मई 1999 के उस फैसले को वापस लेने की मांग की है जिसके तहत उसे दोषी करार दिया गया था. उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो से भी तीन हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर भानुमति ने मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो से तीन हफ्ते के भीतर जवाब तलब किया है. शीर्ष अदालत ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 21 फरवरी की तारीख मुकर्रर की है. यह याचिका राजीव हत्याकांड के दोषी एजी पेरारिवलन ने दायर की है.


सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी थी सजा

उच्चतम न्यायालय ने मई, 1999 के अपने आदेश में हत्याकांड के चार दोषियों पेरारिवलन, मुरूगन, संतम और नलिनी की मौत की सजा बरकरार रखी थी. हालांकि, अप्रैल, 2000 में तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल ने राज्य सरकार की सिफारिश और कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के अनुरोध पर नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. बाद में 18 फरवरी, 2014 को न्यायालय ने दया याचिका पर फैसले में केंद्र की ओर से 11 वर्ष की देरी के मद्देनजर पेरारिवलन और दो अन्य दोषियों संतन और मुरूगन की मौत की सजा को भी उम्रकैद में बदल दिया.

आज की सुनवायी के दौरान पेरारिवलन के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने न्यायालय को बताया कि उनके मुव्वकिल ने शीर्ष न्यायालय के 1999 के फैसले को वापस लेने का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की है और सीबीआइ को इस पर जवाब देना चाहिए. पेरारिवलन ने अपनी अर्जी में कहा है कि वह पिछले 26 वर्षों से जेल में बंद हैं. न्यायालय ने कल केंद्र से कहा था कि वह हत्याकांड के सातों दोषियों को रिहा करने के संबंध में तमिलनाडु सरकार के वर्ष 2016 के पत्र का तीन महीने में जवाब दे. तमिलनाडु सरकार की ओर से दो मार्च, 2016 को लिखे इस पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकार ने सात दोषियों को रिहा करने का फैसला ले लिया है, लेकिन उच्चतम न्यायालय के 2015 के आदेश के मुताबिक, इस संबंध में केंद्र की राय लेना अनिवार्य है.

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