नयी दिल्ली : ग्रीनपीस इंडिया ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सलाह दी है कि देश में वायु प्रदूषण की वजह से लोगों का सांस लेना भी दुश्वार हो रहा है. खासकर, यहां के बच्चों को श्वसन क्रिया में काफी परेशानी हो रही है. संगठन ने सरकार से कहा कि आज की तारीख में वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है.
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ग्रीनपीस इंडिया के वायु प्रदूषण कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं कि उनके संगठन ने वैश्विक स्तर पर सैटेलाइट डाटा के विश्लेषण को प्रकाशित किया है. इस विश्लेषण में बताया गया है कि कोयला और परिवहन उत्सर्जन के दो प्रमुख स्रोत हैं. नाइट्रोजन डॉयक्साइड (NO2) भी पीएम 2.5 और ओजोन के बनने में अपना योगदान देता है. ये दोनों वायु प्रदूषण के सबसे खतरनाक रूपों में बड़े क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं.
कैंपेनर लॉरी मिल्लिवर्ता के अनुसार, जैसा कि हम अपनी रोज की जिंदगी में वायु प्रदूषण से बच नहीं सकते, वैसे ही वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारक भी हमसे छिपे नहीं हैं. यह नया उपग्रह आकाश में हमारी आंख की तरह है. इसकी जद से कोयला जलाने वाले उद्योग और परिवहन क्षेत्र में तेल उद्योग जैसे प्रदूषण के कारक अछूते रह नहीं सकते. अब यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह प्रदूषण के इन कारकों पर काबू पाने के लिए कार्रवाई करे. उन्होंने सरकार को सलाह दी है कि वह प्रदूषण को काम करने के लिए कठोर नीतियों को बनाकर नयी तकनीक को अपनाये, ताकि वायु को स्वच्छ कर लोगों की जिंदगी को बचाया जा सके.
अभी हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर एक रिपोर्ट जारी की गयी, जिसमें यह कहा गया है कि दुनिया भर में 18 साल से कम उम्र की करीब 93 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है. ‘वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य : स्वच्छ वायु निर्धारित करना’ नाम से जारी इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2016 में वायु प्रदूषण से होने वाले श्वसन संबंधी बीमारियों की वजह से दुनिया भर में 5 साल से कम उम्र के 5.4 लाख बच्चों की मौत हुई है. वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में मरने वाले पांच साल से कम उम्र के 10 बच्चों में से एक बच्चे की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो रही है.
ग्रीनपीस इंडिया नामक इस संस्था का दावा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट ने इसी साल जनवरी में ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट एयरोप्किल्पिस 2 में प्रदूषित हवा का बच्चों पर असर को लेकर जाहिर चिंता को और ज्यादा मजबूत किया है. संगठन का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट ने एक बार फिर यह साबित किया है कि गरीब और मध्यम आयवर्ग के देश बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित है. यह चिंताजनक है कि भारत जैसे देश करीब-करीब पूरी आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन और राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है.
ग्रीनपीस इंडिया ने कहा है कि इस साल 1 जून से 31 अगस्त तक सबसे ज्यादा नाइट्रोजन डॉइऑक्साइड वाला क्षेत्र दक्षिण अफ्रिका, जर्मनी, भारत और चीन के वे क्षेत्र हैं, जो कोयला आधारित पावर प्लांट के लिए जाने जाते हैं. परिवहन संबंधी उत्सर्जन की वजह से सैंटियागो डि चिली, लंदन, दुबई और तेहरान जैसे शहर भी एनओ2 हॉटस्पॉट वाले 50 शहरों की सूची में शामिल हैं. उसने कहा कि भारत में दिल्ली-एनसीआर, सोनभद्र-सिंगरौली, कोरबा और ओड़िशा का तलचर क्षेत्र इन 50 शहरों की सूची में शामिल हैं. ये सारे तथ्य इस ओर इशारा करते हैं कि ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र में होने वाला जीवाश्म ईंधन के प्रयोग का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से है.
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