ऐतिहासिक अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है. अयोध्या में यह विवाद दशकों से चला आ रहा था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन रामलला को सौंप दी है.
वहीं, कोर्ट ने अयोध्या में ही अलग जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही सरकार को एक नया ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया है, जिसे वह जमीन मंदिर निर्माण के लिए दी जाएगी.
रामलला कौन हैं?
रामलला न कोई संस्था है और ना ही कोई ट्रस्ट, यहां बात स्वयं भगवान राम के बाल स्वरूप की हो रही है. इसका मतलब यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को लीगल एंटिटी मानते हुए जमीन का मालिकाना हक उन्हें दिया है. कानून के तहत किसी देवता को न्यायिक व्यक्ति माना जाता है, जिनके पास संपत्ति रखने का अधिकार होता है और जो केस कर भी सकते हैं और जिनके खिलाफ केस किया भी जा सकता है.
मालूम हो कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात मस्जिद के भीतरी हिस्से में रामलला की मूर्तियां रखी गईं थीं. 23 दिसंबर 1949 की सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्तियां प्रकट हुई थीं, जो कई दशकों या सदियों से राम चबूतरे पर विराजमान थीं और जिनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था. 23 दिसंबर को पुलिस ने मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया था, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद कुर्क कर उस पर ताला लगा दिया गया था.
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