द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय युद्धबंदियों को खा गये थे जापानी

नयी दिल्ली : दो अप्रैल, 1946 को ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में ब्रिटिश समाचार एजेंसी रायटर्स के एक संवाददाता ने तार भेजा : जापानी लेफ्टिनेंट हिसाता तोमियासू को 1944 में न्यू गुयाना के वेवेक में 14 भारतीय सैनिकों की हत्या और उन्हें भोजन बनाने के लिए फांसी की सजा सुनायी गयी है.... इस संदेश को टाइम्स […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2014 7:31 AM
an image

नयी दिल्ली : दो अप्रैल, 1946 को ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में ब्रिटिश समाचार एजेंसी रायटर्स के एक संवाददाता ने तार भेजा : जापानी लेफ्टिनेंट हिसाता तोमियासू को 1944 में न्यू गुयाना के वेवेक में 14 भारतीय सैनिकों की हत्या और उन्हें भोजन बनाने के लिए फांसी की सजा सुनायी गयी है.

इस संदेश को टाइम्स ऑफ इंडिया समेत सभी अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित किया. जापानी लेफ्टिनेंट को यह सजा द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय युद्धबंदियों के साथ हुए अमानवीय बर्ताव की तस्दीक थी. व्यवहार दस्तावेजों में दर्ज जापानियों के क्रूर व्यवहार के मुताबिक, जापानी सेना अपने नये सैनिकों के सामने भारतीय जवानों को जिंदा टारगेट के तौर पर इस्तेमाल करती थी. यही नहीं, उन्हें भोजन भी बनाया जाता था.

राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग दूसरे विश्व युद्ध को देशभक्त इंडियन नेशनल आर्मी (आइएनए) का समर्थन करनेवाले जापानी शासन और ब्रिटिश शासन के बीच युद्ध के तौर पर प्रचारित करती रही है. लेकिन, जापानी सैनिकों के इस ह्यक्रूरह्ण चेहरे के बारे में कुछ ही लोगों को पता है. यहां बताना प्रासंगिक होगा कि 15 फरवरी, 1942 को सिंगापुर पर कब्जे के बाद जापानी सेना ने भारतीय सेना के 40 हजार सैनिकों को बंदी बना लिया. इनमें से 30 हजार आइएनए में शामिल हो गये थे. जो आइएनए में शामिल नहीं हुए, उनके साथ जापानी सेना के कैंपों में बेहद क्रूर बरताव किया गया.

* टारगेट के तौर पर बैठाये जाते थे

कैंपों में छोटी-छोटी गलती पर जलील किया जाता था. पीटा जाता था. शूटिंग रेंज में ले जाया जाता और जिंदा टारगेट के तौर पर बिठा दिया जाता था. इसके बाद नये भरती हुए जापानी सैनिक निशाना साधते. जो खुशनसीब कैदी बच जाते, उन्हें संगीनों से मौत के घाट उतारा जाता.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version