आरटीआई आवेदकों को सूचना मांगने का बताना होगा कारण: मद्रास हाईकोर्ट

नयी दिल्ली: पूरे देश में सूचना के अधिकारों के तहत काम में पारदर्शिता लाने के कानून के मद्देनजर मद्रास उच्‍च न्‍यायालय ने एक फैसला लिया है. मद्रास की उच्च न्यायालय ने कहा कि आरटीआई आवेदकों को सूचना मांगने का कारण बताना होगा. इसके साथ ही अदालत ने एक प्रमुख मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2014 1:15 PM
an image

नयी दिल्ली: पूरे देश में सूचना के अधिकारों के तहत काम में पारदर्शिता लाने के कानून के मद्देनजर मद्रास उच्‍च न्‍यायालय ने एक फैसला लिया है. मद्रास की उच्च न्यायालय ने कहा कि आरटीआई आवेदकों को सूचना मांगने का कारण बताना होगा. इसके साथ ही अदालत ने एक प्रमुख मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर पंजीयन कार्यालय को फाइल नोटिंग उजागर करने से छूट दे दी है.

जस्टिस एन पॉल वसंतकुमार और के रविचंद्रबाबू की खंडपीठ ने कहा कि एक आवेदक को सूचना मांगने का उद्देश्य जरुर बताना चाहिए और उसे यह भी पुष्टि करनी चाहिए कि उसका यह उद्देश्य कानूनसंगत है. यह एक ऐसा फैसला है, जो आरटीआई कानून के तहत सूचना हासिल करने के अधिकार पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है और इसकी आलोचना कानूनी विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने की है.

पीठ ने कहा ‘यदि सूचनाएं एक ऐसे व्यक्ति को दी जानी हैं, जिसके पास इन्हें मांगने के पीछे की कोई पर्याप्त वजह या उद्देश्य नहीं है, तो हमारा मानना है कि सूचना मांगने के पीछे के उद्देश्य से अनभिज्ञ व्यक्ति को ये सूचनाएं पचरें की तरह देने से कानून के उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती’.

हालांकि विधायिका ने जिस समय आरटीआई कानून पारित किया था, तो उसमें विशेष तौर पर धारा6(2) शामिल की गई थी. यह धारा कहती है कि सूचना के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को इसके लिए कोई भी वजह देने की जरुरत नहीं होगी.मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश में सूचना के अधिकार कानून की धारा 6(2) का जिक्र नहीं है.

आदेश में कहा गया ‘हमें गलत न समझा जाए कि हम विधायिका के खिलाफ कुछ कह रहे हैं. हम इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि एक कानून के उदेदश्य की पूर्ति होनी चाहिए. इसका उद्देश्य एक सार्वजनिक प्राधिकरण की पारदर्शिता एवं जवाबदेही के साथ प्रभावी संचालन सुनिश्चित करना है.’ इस आदेश को ‘अवैध’ बताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा है कि यह कानून की ‘मूल भावना’ के खिलाफ है.

उन्होंने प्रेस ट्रस्ट को बताया ‘यह उच्च न्यायालय का स्वहित साधक आदेश है और यह उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय के पूर्व आदेशों के ही अनुरुप है, जो वस्तुत: अदालत की प्रशासनिक पारदर्शिता को रोकता है.’आरटीआई के कार्यकर्ता सी जे करीरा ने कहा कि यह फैसला आरटीआई कानून के लिए एक गंभीर झटका है क्योंकि यह धारा 6(2) को निष्फल करने के तुल्य है और वह भी स्पष्ट तौर पर कहे बिना.

प्रसिद्ध आरटीआई विशेषज्ञ शेखर सिंह ने भी कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सूचना के अधिकार को एक मूल अधिकार के तौर पर परिभाषित किया है और इसका इस्तेमाल करने के लिए किसी को कोई वजह बताने की जरुरत नहीं है.

सिंह ने कहा कि परिभाषिक तौर पर देखें तो मौलिक अधिकार का अर्थ है कि अधिकार में कोई शर्त निहित नहीं है.उन्होंने कहा ‘इस आदेश के साथ दो समस्याएं हैं. यह कानून का उल्लंघन है. आरटीआई सूचना मांगने के लिए किसी कारण की मांग नहीं करता. दूसरे, यह आदेश उच्चतम न्यायालय के उन पूर्व आदेशों का भी उल्लंघन है, जिसमें इसे मौलिक अधिकार बताया गया है.’

उन्होंने कहा कि इस आदेश के जरिए उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के पूर्व आदेशों को उलट कर रख दिया है क्योंकि जिस समय उन्होंने कहा कि सूचना मांगने वाले व्यक्ति को इसकी वजहें देनी होंगी, वहीं आवेदक के मौलिक अधिकार का हनन हो गया.

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के कार्यक्रम संयोजक वेंकटेश नायक के अनुसार ‘सूचना का अधिकार कानून एक मौलिक अधिकार है और यह भारत में जन्मे हर नागरिक को प्राप्त है. आपको अपने मौलिक अधिकारों के इस्तेमाल के लिए वजहें बताने की जरुरत नहीं है. सूचना के अधिकार को अनुच्छेद 19 (1) (ए)में प्रदत्त भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 में वर्णित जीवन के अधिकार के तहत उच्चतम न्यायालय से मान्यता प्राप्त है.’

उन्होंने कहा कि जब कोई कहे कि एक नागरिक को यह साबित करने की जरुरत है कि वह कोई सूचना विशेष किसलिए चाहता है जबकि उस सूचना को सार्वजनिक प्राधिकरण अपनी मर्जी से सार्वजनिक कर सकता है तो यह ‘मौजूदा न्यायशास्त्र का मजाक’ और ‘एक बडा आश्चर्य’ है.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version