नयी दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन को लेकर पीडीपी के साथ बातचीत के बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि राजनीतिक दलों के लिए अपने वैचारिक रुख को छोडना ‘बहुत कठिन’ होता है, हालांकि उन्होंने संकेत दिया कि विवादित मुद्दों को अलग रखा जा सकता है.
जेटली ने इस बात पर जोर दिया कि इस संवेदनशील राज्य में सरकार तीन मुद्दों- संप्रभुता, विकास के लिए सुशासन और क्षेत्रीय संतुलन- पर आधारित होनी चाहिए.उन्होंने उम्मीद जताई कि राज्य के व्यापक हित के लिए संबंधित पार्टियां साथ आएंगीं.
राज्य में विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आने के बाद से सरकार बनाने को लेकर चल रहा गतिरोध आज 13वें दिन भी जारी रहा. वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि ‘‘यह कहीं बडी लडाई’’ है जो लोकतांत्रिक दलों एवं भारत सरकार बनाम सीमा पार से समर्थित अलगाववादियों के बीच है.
उन्होंने कहा कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार राज्य में राज्यपाल शासन लगाने पर खुश नहीं होगी क्योंकि ‘‘मैं सोचता हूं कि अगर किसी एक राज्य को लोकप्रिय सरकार की जरुरत है तो वह जम्मू-कश्मीर है.’’ जेटली ने भाजपा और पीडीपी के बीच बातचीत के बारे में विवरण का खुलासा नहीं किया. उन्होंने कहा कि वह इससे अवगत नहीं है.
यह पूछे जाने पर कि भाजपा धारा 370 और राज्य से आफ्सपा हटाने की पीडीपी की मांग पर अपने रुख को छोड सकेगी, उन्होंने कहा, ‘‘राजनीतिक दलों के लिए अपने वैचारिक रुखों को छोडना बहुत मुश्किल होता है. क्या मैं पीडीपी अथवा एनसी से उनके वैचारिक रुखों को छोडने की उम्मीद कर सकता हूं? इसी तरह से अगर वे भाजपा से अपने वैचारिक रुख को छोडने के लिए कहते हैं तो जवाब ना होगा.’’
इसके साथ ही जेटली ने एनडीटीवी से कहा, ‘‘एक बार जब कोई सरकार इन तीन पहलुओं :संप्रभुता, सुशासन और क्षेत्रीय संतुलन: को ध्यान में रखकर गठित की जाती है तो फिर हम इसको लेकर कोशिश कर सकते हैं कि विचाराधारा को छोडे बिना क्या कहा जाना है और क्या नहीं कहा जाना है.’’ उनकी यह टिप्पणी इसका संकेत है कि विवादित मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाला जा सकता है.
जेटली ने कहा, ‘‘मैं उम्मीद करता हूं कि इस प्रक्रिया में शामिल पार्टियां साथ आएंगी. कश्मीर के व्यापक हित में एक सरकार की जरुरत है और इसको देखते हुए हम इस दिशा में काम कर रहे हैं.’’
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