नयी दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को उच्चतम न्यायालय से उस समय राहत मिल गयी जब न्यायालय ने उनके खिलाफ लंबित दो आपराधिक मानहानि के मुकदमों पर रोक ही नहीं लगा दी बल्कि इस संबंध में दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर केंद्र से जवाब भी तलब कर लिया.
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, नोटिस जारी किया जाये. नोटिस का जवाब छह सप्ताह के भीतर देना है. इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि मुख्यमंत्री के खिलाफ दिल्ली की अदालत में लंबित आपराधिक मानहानि के दो मामलों में कार्यवाही पर रोक रहेगी. शीर्ष अदालत ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और अधिवक्ता सुरेंद्र कुमार शर्मा द्वारा अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ दायर दो अलग अलग मानहानि की शिकायतों पर हो रही कार्यवाही पर रोक लगा दी.
आम आदमी पार्टी के नेता को परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) और धारा 500 (मानहानि के लिये दंड) के तहत अभियुक्त के रुप में तलब किया गया था. इसके बाद वह इस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं. गडकरी ने आरोप लगाया था कि आप नेता ने उनकी मानहानि की है जिन्होंने पार्टी की भारत के सबसे अधिक भ्रष्ट व्यक्तियों की सूची में उनका नाम शामिल किया था. यह मामला निचली अदालत में लंबित है जहां हाल ही में इस मामले में उनका आंशिक बयान दर्ज किया गया था.
मानहानि का दूसरा मामला जिसकी सुनवायी पर भी रोक लगा दी गई वह केजरीवाल, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और योगेंद्र यादव के खिलाफ शर्मा की ओर से दायर किया गया है. इसमें आरोप लगाया गया है कि इन लोगों ने उन्हें 2013 विधानसभा चुनाव में पार्टी का टिकट देने से इनकार करने के बाद खबरों में उनके खिलाफ मानहानिकारक बयान दिये थे.
शीर्ष अदालत में आज संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्यायालय ने केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया कि भाजपा नेता सुब्रमणियन स्वामी के मामले की तरह ही इस मामले में भी कार्यवाही पर रोक लगायी जाये.
न्यायालय ने यह भी कहा कि केजरीवाल की याचिका पहले से ही लंबित स्वामी की याचिका के साथ संलग्न कर दी जाये क्योंकि दोनों में ही मानहानि के अपराध के लिये दंडात्मक प्रावधान निरस्त करने का अनुरोध किया गया है. इससे पहले, न्यायालय ने दो दंडात्मक प्रावधानों की वैधानिकता को चुनौती देने वाली स्वामी की अर्जी पर केंद्र से जवाब मांगा था.
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