सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को लिया आड़े हाथ

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए लिंग निर्धारण पर पाबंदी लगाने संबंधी कानून पर सख्ती से अमल करने के निर्देशों को व्यापक रूप से प्रचार नहीं करने पर बुधवार को केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों को आड़े हाथ लिया. इसमें बिहार सरकार भी शामिल है. जस्टिस दीपक मिश्र […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 7, 2015 7:14 AM
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नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए लिंग निर्धारण पर पाबंदी लगाने संबंधी कानून पर सख्ती से अमल करने के निर्देशों को व्यापक रूप से प्रचार नहीं करने पर बुधवार को केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों को आड़े हाथ लिया. इसमें बिहार सरकार भी शामिल है. जस्टिस दीपक मिश्र और जस्टिस प्रफुल्ल सी पंत की खंडपीठ ने कन्या भ्रूण हत्या से संबंधित मामलों में अभियोजन की ‘कम’ दर के लिए बिहार सरकार को आड़े हाथ लिया. कोर्ट ने इस तथ्य को नोट किया कि वर्ष 2013 के बाद से राज्य में कोई मामला दर्ज ही नहीं हुआ है.

न्यायालय ने पाया कि गर्भ में लिंग निर्धारण संबंधी कानून 1994 से लागू है. बिहार में 2012-13 से सिर्फ 159 मामलों में ही कार्रवाई की गयी. इस समय सिर्फ 126 मामले ही लंबित हैं. कोर्ट ने कहा,‘हम यह टिप्पणी करने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं कि यदि सक्षम प्राधिकारियों मे उचित जागरूकता होती तो बहुत संभव है कि इसके नतीजे अलग होते. जागरूकता की कमी एक तथ्य है. हमारी सुविचारित राय है कि सक्षम प्राधिकारियों को इस कानून के बारे में सही ट्रेनिंग देने की जरूरत है.’ शीर्ष अदालत ने पटना हाइकोर्ट के बिहार न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष से आग्रह किया कि इस संबंध में ट्रेनिंग के लिए समय तालिका तैयार की जाये. कोर्ट ने कहा कि 1994 के कानून के तहत लंबित मामलों पर अधिक तत्परता से गौर करना चाहिए.

न्यायालय ने इसके साथ ही निर्देश दिया कि निचली अदालत में लंबित मामलों का अक्तूबर, 2015 तक निबटारा किया जाये. पेश मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की वकील बीनू टमटा ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि विभिन्न राज्यों में आकाशवाणी और दूरदर्शन से इसे व्यापक रूप से प्रचारित करने के लिए उचित निर्देश दिये जायेंगे. न्यायालय ने निर्देश दिया कि 15 अप्रैल के आदेश की प्रति प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) और प्रधान सचिव (कानून) को भेजी जाये, ताकि इस आदेश का अनुवाद कराने के बाद स्थानीय अखबारों में इसे प्रकाशित कराया जा सके. आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से उचित तरीके से इसे प्रचारित किया जा सके.

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