केंद्रपाडा जिले के ऑलवेयर गांव की युवती ने याद करते हुए कहा, ‘मैं उस वक्त खुशी से अभिभूत हो गई, जब जून 2005 में डाकिया तत्कालीन राष्ट्रपति का हस्ताक्षरित एक पत्र और बीस हजार रुपये का ड्राफ्ट लेकर आया. मैंने कलाम अंकल को अपने भाई बहन की दुर्दशा के बारे में पत्र लिखा था.’
उसने कहा, ‘उस वक्त मैं मुश्किल से 11 साल की थी और मेरे भाई बहन छह और चार वर्ष के थे. मेरे माता पिता के गुजरने के बाद मैं ही उनका ध्यान रख रही थी. मुझे मीडिया से पता चला कि वह जनता के राष्ट्रपति हैं. वह बच्चों से प्यार करते हैं. मैंने उन्हें एक खत लिखा.’ उसने कहा कि कलाम की दखल के बाद स्थानीय प्रशासन हरकत में आया और परिवार को बचाया. उसके बाद कई अन्य जगहों से भी मदद आई.
युवती ने कहा कि मुख्यमंत्री कार्यालय आगे आया और उसने बीस हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी. राष्ट्रपति के व्यवहार ने स्वास्थ्य अधिकारियों का हृदय परिवर्तन भी किया. ‘उन्होंने मेरे भाई और बहन पर चिकित्सकीय ध्यान देना शुरू कर दिया.’ उसने कहा, ‘मेरे भाई बहन पिछले एक दशक में सफलतापूर्वक एड्स से लडाई की है. राष्ट्रपति के हस्तक्षेप ने उन्हें नयी जिंदगी दी है. उनके निधन से हम बेहद दुखी हैं. मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैंने अपने परिवार के किसी करीब सदस्य को खो दिया हो.’
रामनगर जिले के एक निवासी ने भी कलाम के निधन पर शोक व्यक्त किया. प्रफुल्ल मिस्त्री ने कहा, ‘हम इस देश के वास्तविक नागरिक हैं. लेकिन प्रशासन ने हमें बांग्लादेशी बताया और 15 जनवरी 2015 को भारत छोडने का नोटिस दे दिया. हमने तब राष्ट्रपति कलाम को पोस्ट कार्ड भेजे.’
मिस्त्री ने कहा, ‘राष्ट्रपति ने हस्तक्षेप किया और रिपोर्ट मांगी. एक महीने बाद निर्वासन अभियान को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. हमारा मानना है कि केंद्र सरकार ने निर्वासन को राष्ट्रपति के हस्तक्षेप की वजह से निलंबित कर दिया. उनकी मौत हमारे लिए निजी क्षति है.’