मुंबई : साल 2008 के मालेगांव धमाके के मामले में पूरा ‘यू-टर्न’ लेते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और पांच अन्य आरोपियों के खिलाफ सभी आरोप हटा लिए हैं जबकि लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित सभी 10 अन्य आरोपियों के खिलाफ सख्त मकोका कानून के तहत लगाये गये आरोप भी हटा लिये गये हैं. एनआईए ने दावा किया कि जांच के दौरान प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पांच अन्य के खिलाफ ‘पर्याप्त सबूत नहीं पाए गए.’ एजेंसी ने कहा कि उसने आरोप-पत्र में कहा है कि ‘उनके खिलाफ दर्ज मुकदमा चलाने लायक नहीं है.’
क्या है पूरा मामला
29 सितंबर 2008 को रमजान के दौरान मालेगांव में नमाज अदा कर निकल रहे लोगों के दोहरे बम धमाकों की चपेट में आ जाने से सात लोग मारे गए थे. मालेगांव धमाकों के मामले की छानबीन में कई उतार-चढाव आते रहे हैं. इस धमाके के लिए हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों से जुडे लोगों को जिम्मेदार माना जाता रहा है. इस मामले की शुरुआती जांच मुंबई एटीएस के संयुक्त आयुक्त हेमंत करकरे ने की थी. 26-11 के मुंबई आतंकवादी हमले में करकरे मारे गए थे.
साल 2011 में यह मामला एनआईए को सौंपे जाने से पहले एटीएस ने 16 लोगों पर मामला दर्ज किया था. लेकिन मुबई की एक अदालत में 20 जनवरी 2009 और 21 अप्रैल 2011 को 14 आरोपियों के खिलाफ ही आरोप-पत्र दाखिल किये गये. पुरोहित और प्रज्ञा ने बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में कई अर्जियां दाखिल कर आरोप-पत्र और मकोका के तहत आरोप लगाये जाने को चुनौती दी थी.
एटीएस की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है एनआईए
साध्वी के अलावा शिव नारायण कलसांगडा, श्याम भवरलाल साहू, प्रवीण टक्कलकी, लोकेश शर्मा और धान सिंह चौधरी के खिलाफ दर्ज आरोप हटा दिये गये हैं. एनआईए ने यह भी कहा कि जांच के दौरान यह पाया गया कि मकोका यानी महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून के तहत इस मामले में आरोप नहीं बनते. मकोका के प्रावधानों के मुताबिक, पुलिस अधीक्षक रैंक के किसी अधिकारी के सामने दिया गया बयान अदालत में साक्ष्य माना जाता है.
एजेंसी ने आरोप-पत्र में कहा, ‘एनआईए ने मौजूदा अंतिम रिपोर्ट सौंपने में एटीएस मुंबई की ओर से मकोका के प्रावधानों के तहत दर्ज किए गए इकबालिया बयानों को आधार नहीं बनाया है.’ लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित एवं नौ अन्य पर अब आतंकवाद से मुकाबले के लिए बनाए गए गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए), भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), शस्त्र कानून और विस्फोटक पदार्थ कानून के प्रावधानों के तहत हत्या और साजिश सहित कई अन्य आरोपों में मुकदमा चलेगा.
एनआईए के महानिदेशक शरद कुमार ने आज पत्रकारों से बातचीत में दावा किया कि केस को कतई कमजोर नहीं किया गया है. एजेंसी के पहले के रुख, जब उसने उच्चतम न्यायालय में साध्वी और अन्य की जमानत का विरोध किया था, के बारे में पूछे जाने पर कुमार ने कहा, ‘जब तक हमारी जांच पूरी नहीं हुई थी, हमें एटीएस की ओर से की गई जांच के हिसाब से चलना था. अब जब हमने जांच पूरी कर ली है तो हमने अपनी अंतिम रिपोर्ट (आरोप-पत्र) दाखिल कर दी है.
काग्रेस ने भाजपा पर आरोपी को बचाने का लगाया आरोप
लोक अभियोजक गीता गोडंबे ने विशेष न्यायाधीश एस डी टेकाले की अदालत में आज आरोप-पत्र दायर किया. मामले के विशेष लोक अभियोजक अविनाश रासल ने कहा कि उन्हें (एनआईए द्वारा) आरोप-पत्र दाखिल करने के बारे में जानकारी नहीं दी गई. रासल ने कहा, ‘मैं दुखी हूं और मामले से इस्तीफा दे सकता हूं.’
कांग्रेस ने साध्वी प्रज्ञा और पांच अन्य के खिलाफ सभी आरोप हटाने और पुरोहित एवं नौ अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप हल्के करने को लेकर एनआईए पर हमला बोला. वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘जैसा कि मैंने पहले ही बोला था – भाजपा और आरएसएस ने आतंकवाद के मामलों में शामिल संघ के कार्यकर्ताओं को बचाने का काम शुरू कर दिया है.’ सिंह ने कहा, ‘क्या एनआईए के डीजी को यही काम करने के लिए सेवा विस्तार दिया गया था?’
सरकार जांच एजेंसी के काम में दखल नहीं देती : रिजीजू
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरन रिजीजू ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि सरकार एजेंसियों की जांच में दखल नहीं देती. रिजीजू ने कहा, ‘हम एजेंसियों को स्वतंत्र तौर पर काम करने देते हैं.’ एनआईए ने पुरोहित के खिलाफ थलसेना की कोर्ट ऑफ एन्क्वायरी रिपोर्ट का जिक्र किया जिसमें दावा किया गया है कि एटीएस अधिकारी उनके घर में दाखिल हुए थे और आरडीएक्स ‘रख दिया था.’
बहरहाल, एनआईए थलसेना की जांच रिपोर्ट में किए गए दावों के बाबत अपने किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है. मालेगांव में यह घटना अंजुमन चौक और भीखू चौक के बीच ‘शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी’ के सामने हुई थी.यह धमाका एक एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल में लगी एक आईईडी से हुआ. वारदात के बाद मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस को सौंपी गई. महाराष्ट्र एटीएस ने 18 अक्तूबर 2008 को यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया और फिर एक महीने बाद मकोका की धाराएं लगाईं.
एनआईए ने कहा कि इस मामले में जांच में अप्रैल 2015 तक देरी हुई, क्योंकि आरोपियों ने उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में कई अर्जियां दाखिल कर रखी थीं. इन अर्जियों पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद एनआईए ने रमेश शिवाजी उपाध्याय, समीर शरद कुलकर्णी, अजय रहिरकर, राकेश धावडे, जगदीश चिंतामण म्हात्रे, पुरोहित, सुधाकर धर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी, रामचंद्र कलसांगडा और संदीप डांगे के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया.
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