चीन का परोक्ष संदर्भ देते हुए स्वरुप ने कहा कि केवल ‘एक देश ने’ भारत की कोशिश का विरोध किया जबकि अन्य देशों ने ‘प्रक्रिया संबंधी’ मुद्दे उठाए. इसका मतलब यह नहीं है कि ये देश भारत के खिलाफ थे. उन्होंने कहा कि इन देशों के पास एनएसजी में भारत के प्रवेश को लेकर अलग समाधान था. स्वरुप ने कहा कि बहरहाल, भारत उस देश को लगातार यह बताता रहेगा कि एक दूसरे के हितों, चिंताओं और प्राथमिकताओं के बारे में परस्पर सहमति के आधार पर ही रिश्ते आगे बढते हैं.
यह ऐसा मामला (एनएसजी की सदस्यता) है जिस पर हम चर्चा करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे क्योंकि यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है.’ उन्होंने यह भी कहा कि भारत का उद्देश्य सम्मिलन के क्षेत्र को व्यापक करना एवं रास्ते अलग करने वाले क्षेत्र को छोटा करना है. विकास स्वरुप से यह पूछा गया कि क्या इस सप्ताह के शुरू में एमटीसीआर का पूर्णकालिक सदस्य बना भारत ‘जैसे को तैसा’ जवाब देते हुए चीन का 35 देशों के इस समूह में प्रवेश बाधित करेगा, इस पर उनका जवाब था कि भारत ऐसी ‘सौदेबाजी’ में भरोसा नहीं करता.
उन्होंने कहा कि भारत को अप्रसार संबंधी सराहनीय रिकॉर्ड की वजह से सदस्यता मिली है और दूसरे देश के आवेदन पर उसकी गुणवत्ता के अनुसार विचार किया जाएगा. स्वरुप ने कहा कि उम्मीद है कि भारत की एमटीसीआर की सदस्यता भारतीय उद्योग के साथ उच्च प्रौद्योगिकी वाले समझौते आसान करेगी और हमारे अंतरिक्ष एवं रक्षा कार्यक्रमों के लिए उच्च प्रौद्योगिकी वाले सामान तक पहुंच को सुगम बनाएगी.
उन्होंने कहा ‘इस व्यवस्था की सदस्यता के चलते अन्य एमटीसीआर साझीदारों से अपने आप खास तरजीह नहीं मिलेगी बल्कि इससे अन्य एमटीसीआर भागीदारों के निर्यात नियंत्रण नीतिगत ढांचे में भारत के संरेखन के लिए आधार बनेगा.’ स्वरुप ने कहा कि एमटीसीआर की सदस्यता से हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यक्रमों पर कोई रोक नहीं लगेगी.