33 साल पहले…
वैसे यह पहली बार नहीं है कि जब किसी वरिष्ठअधिकारी को नजरअंदाज कर किसी निचले क्रम के अधिकारी को सेना की कमान सौंप दी गयी हो. 33 साल पहले, 1983 में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ले. जनरल ए. एस वैद्य को वरिष्ठता के क्रम को दरकिनार कर सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी थी. उस समय लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा सबसे वरिष्ठ सैनय अधिकारी थे जिनके सेना प्रमुख बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे थे. इस खबर से एसके सिन्हा इतने आहत हुए कि उन्होंने इंदिरा गांधी के फैसले से नाराजगी जताते हुए अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया था.
1972 की यादें..
जब सेना प्रमुख की नियुक्ति की बात आती है तो लोगों के जेहन में 1972 की यादें भी ताजा हो जाती है. 1972 में इंदिरा गांधी ने लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत की वरिष्ठता का ख्याल नहीं रखते हुए जी.जी. बेवूर को सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी थी. यहां उल्लेख कर दें कि लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत उस वक्त देश भर में खासा लोकप्रिय थे. वे दूसरे विश्व युद्ध के लिए विक्टोरिया क्रॉस अवॉर्ड भी अपने नाम कर चुके थे.
1984 कावाक्या : ऑपरेशन ब्लूस्टार
सिखों के लिए अलग देश "खालिस्तान" की मांग और इसके बाद भारतीय इतिहास में एक नया पन्ना जोड़ने वाले व्यक्ति जरनैल सिंह भिंडरावाले थे. 1983 में भिंडरावाले ने अपने साथियों के साथ स्वर्ण मंदिर में शरण ले ली. स्वर्ण मंदिर से ही भिंडरावाले ने अपनी गतिविविधियां शुरू कर दी. अलगाववादी गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे सरकार और उनके बीच टकराव होने लगा. टकराव के चरम स्तर पर पहुंच जाने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 3 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार के आदेश दे दिए जिसके बाद भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में धावा बोल दिया. पांच दिन चले ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत भिंडरावाले और उसके साथियों के कब्जे से स्वर्ण मंदिर को मुक्त करा लिया गया. इस घटना का अंजाम यह हुआ कि इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों ने बदला लेने के लिए उनकी हत्या कर दी थी.