संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक सबको स्वास्थ्य का लक्ष्य तय किया है. इस बार संयुक्त राष्ट्र ने 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस पर ‘अवसाद’ विषय पर फोकस किया है. प्रधानमंत्री ने कहा कि अवसाद इस बार उनका मुख्य विषय है. हम लोग भी अवसाद शब्द से परिचित हैं. एक अनुमान है कि दुनिया में 35 करोड़ से ज्यादा लोग मानसिक अवसाद से पीडि़त हैं.
उन्होंने कहा कि मुसीबत ये है कि हमारे अगल-बगल में भी इस बात को हम समझ नहीं पाते हैं और शायद इस विषय में खुल कर के बात करने में हम संकोच भी करते हैं. जो स्वयं अवसाद ग्रस्त महसूस करता है, वो भी कुछ बोलता नहीं, क्योंकि वो थोडी शर्मिंदगी महसूस करता है.
मोदी ने कहा, ‘मैं देशवासियों से कहना चाहूंगा कि अवसाद ऐसा नहीं है कि उससे मुक्ति नहीं मिल सकती है. एक मनोवैज्ञानिक माहौल पैदा करना होता है और उसकी शुरुआत होती है. पहला मंत्र है, अवसाद से दबने की बजाय उसे व्यक्त करने की जरुरत है.’
उन्होंने कहा कि अपने साथियों के बीच, मित्रों के बीच, मां-बाप के बीच, भाइयों के बीच, शिक्षक के साथ खुल कर के कहिए आपको क्या हो रहा है. कभी-कभी अकेलापन खास कर के हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को तकलीफ ज्यादा हो जाती है. हमारे देश का सौभाग्य रहा कि हम लोग संयुक्त परिवार में पले-बढे हैं, विशाल परिवार होता है, मेल-जोल रहता है और उसके कारण अवसाद की संभावनायें खत्म हो जाती हैं.