एमफिल व पीएचडी सीटों में कटौती के बाद ध्यान क्यों नहीं खींच पा रहा है जेएनयू ?

प्रतिरोध व आंदोलन के प्रतीक के रूप में पहचान बनाने वाली यूनिवर्सिटी जेएनयू एक बार फिर चर्चा में है. जेएनयू में एमफिल/ पीएचडी की कुल 970 सीटों को घटाकर 102 कर दिया गया है. सरकार के इस फैसले के खिलाफ जेएनयू में विरोध के स्वर उठे लेकिन कभी यह राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बन सका. मीडिया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 5, 2017 2:28 PM
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प्रतिरोध व आंदोलन के प्रतीक के रूप में पहचान बनाने वाली यूनिवर्सिटी जेएनयू एक बार फिर चर्चा में है. जेएनयू में एमफिल/ पीएचडी की कुल 970 सीटों को घटाकर 102 कर दिया गया है. सरकार के इस फैसले के खिलाफ जेएनयू में विरोध के स्वर उठे लेकिन कभी यह राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बन सका. मीडिया में भी इसे उतनी जगह नहीं मिली, जिसकी उम्मीद की जा रही थी. कल राज्यसभा सांसद शरद यादव सीट कटौती मुद्दे पर विरोध के लिए जेएनयू पहुंचे लेकिन यहां भी उनके समर्थन में ज्यादा लोग उपस्थित नहीं थे. कभी ओबीसी व दलित राजनीति की जमीन तैयार करने वाला जेएनयू में सीट कटौती का मुद्दे को लेकर खामोशी के कई राजनीतिक मायने है.

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