कश्मीर में पत्थरबाजी पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा : कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पक्षों से ही होगी वार्ता

नयी दिल्ली : सरकार ने अलवागावादी तत्वों या फिर कश्मीर में ‘विलय या आजादी’ के मुद्दे उठाने वालों से बातचीत करने से शुक्रवारको इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हालात सामान्य बनाने के लिए सिर्फ उन पक्षों से बात करेंगे जिन्हें कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है. शीर्ष अदालत भी अटार्नी जनरल मुकुल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 28, 2017 7:31 PM
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नयी दिल्ली : सरकार ने अलवागावादी तत्वों या फिर कश्मीर में ‘विलय या आजादी’ के मुद्दे उठाने वालों से बातचीत करने से शुक्रवारको इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हालात सामान्य बनाने के लिए सिर्फ उन पक्षों से बात करेंगे जिन्हें कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है. शीर्ष अदालत भी अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी के दृष्टिकोण से सहमत था और उसने कहा, ‘वे सभी जिन्हें कानून नहीं रोकता है, मुलाकात कर सकते हैं और अपने सुझाव दे सकते हैं क्योंकि स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.’

कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब रोहतगी ने कहा, ‘सरकार वार्ता मेज पर आयेगी यदि कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पक्ष वार्ता में शिरकत करेंगे और अलगाववादी तत्वों से नहीं जो कश्मीर में विलय और आजादी के मुद्दे उठाते हैं.’ शीर्ष अदालत ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन, श्रीनगर से कहा कि वह पथराव और कश्मीर घाटी में सड़कों पर हिंसक विरोध सहित संकट के समाधान के लिए सुझाव दें. कोर्ट ने बार एसोसिएशन से कहा कि इस संकट से निकलने के लिए कार्यशील सुझावों के लिए सभी पक्षकारों को वार्ता की मेज पर लाने के लिए वह पहला कदम उठाये.

चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर, जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने बार एसोसिएशन के इस रवैये पर अप्रसन्नता व्यक्त की कि वह सभी पक्षकारों की जिम्मेदारी नहीं ले सकते और सिर्फ वकीलों की ओर से ही अपनी बात रख सकते हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि जब आप यहां आये हैं तो आप इस तरह की दृष्टिकोण नहीं अपना सकते.

पीठ ने कहा कि अगला कदम तभी उठेगा यदि बार कार्यशील सुझावों के साथ आगे आयें. कोर्ट ने इसके साथ ही इस मामले की सुनवाई नौ मई के लिए स्थगित कर दी. पीठ ने वकीलों के संगठन से कहा कि वह यह सुनिश्चित करे कि सड़कों पर आंदोलन नहीं हो और पथराव की घटनाएं नहीं हों. अटार्नी जनरल ने वार्ता में अलगाववादियों को शामिल करने के लिए बार एसोसिएशन के रवैये पर आपत्ति की.

रोहतगी ने हलफनामे का कुछ अंश पढ़ा जिसमें बार एसोसिएशन ने कश्मीर के विलय का मुद्दा उठाया है और कुछ अलगाववादी नेताओं के नामों का जिक्र करके इसे राजनीतिक रंग दिया है. ये अलगाववादी नेता घरों में नजरबंद हैं. अटार्नी जनरल ने कहा, ‘यहां बार का मामला अलग है, परंतु उन्होंने (बार एसोसिएशन के वकील) गीलानी और अलगाववादियों की बात कर रहे हैं. यह सब क्या है? दस बार वह कहते हैं कि इन्हें रिहा करो.’

इस बीच, पीठ ने उन्हें टोका और स्पष्ट किया कि उसने वार्ता के लिए पहले से शर्त लगाने वाली किसी भी दलील को न तो स्वीकार किया है और न ही इस पर विचार किया है. शीर्ष अदालत हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन की अपील पर सुनवाई कर रही है जिसमें पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है, क्योंकि इसके इस्तेमाल से कई लोग मारे गये हैं या फिर जख्मी हुए हैं. इस मामले में दस अप्रैल को सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि वह भीड़ नियंत्रण के लिए रबर की गोलियों सहित विकल्पों पर विचार कर रहा है.

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