Freebies: चुनाव के दौरान मुफ्त के वादों पर संसद में हो बहस

मुफ्त के वादों पर राज्यसभा में चिंता जाहिर करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इसपर राजनीतिक दलों को विचार करने को कहा. उन्होंने कहा कि सदन में सब्सिडी और मुफ्त वादों पर खुली बहस होनी चाहिए. क्योंकि अधिकांश सत्ताधारी दल ऐसे वादों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं.

By Anjani Kumar Singh | March 19, 2025 6:44 PM
an image

Freebies:देश में चुनाव के दौरान मुफ्त वादों की घोषणा लगातार बढ़ रही है. हर दल सत्ता हासिल करने के लिए मुफ्त के वादों की घोषणा करने में पीछे नहीं है. समय-समय पर ऐसे वादों पर रोक लगाने की मांग हो रही है. इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हो चुकी है और मामले की सुनवाई हो रही है. कई आर्थिक विशेषज्ञ भी ऐसे वादों को लागू करने के प्रतिकूल असर के प्रति चिंता जाहिर कर चुके हैं. कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, झारखंड जैसे राज्यों में मुफ्त के वादों को पूरा करने के लिए सरकार को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है और इससे राज्य की आर्थिक स्थिति दिन ब दिन खराब होती जा रही है. लेकिन राजनीतिक दल इससे सबक लेने को तैयार नहीं है.

मुफ्त के वादों पर खुली बहस की जरूरत

मुफ्त के वादों पर राज्यसभा में चिंता जाहिर करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इसपर राजनीतिक दलों को विचार करने को कहा. उन्होंने कहा कि सदन में सब्सिडी और मुफ्त वादों पर खुली बहस होनी चाहिए. क्योंकि अधिकांश सत्ताधारी दल ऐसे वादों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं. शून्यकाल में सपा सांसद रामगोपाल यादव की एमपीलैड फंड को पांच करोड़ से 20 करोड़ रुपये सालाना करने की मांग पर सभापति ने यह टिप्पणी की.

उन्होंने कहा कि देश तभी प्रगति करता है जब पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) उपलब्ध हो. लेकिन चुनावी प्रक्रिया ऐसी हो गयी है कि यह चुनावी प्रलोभन बन गया है. मुफ्त के वादों के कारण सत्ता में आने के बाद सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है और कई योजनाओं पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है. ऐसे में ऐसे वादों को लेकर एक राष्ट्रीय नीति समय की मांग है. ताकि सरकार के सभी निवेश किसी व्यापक जनहित में प्रयोग हो सके. 

विकसित देशों की तरह सब्सिडी का लाभ सीधे लाभार्थी को मिले

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कृषि क्षेत्र में सब्सिडी की जरूरत है. विकसित देशों की तरह भारत में भी सब्सिडी का पैसा सीधे किसानों के खाते में भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए. अमेरिका में भारत की तुलना में किसानों की संख्या पांच गुणा कम है. लेकिन अमेरिकी किसानों की आय औसत अमेरिकी लोगों से अधिक है. क्योंकि वहां किसानों को सब्सिडी का पैसा पारदर्शी तरीके से उनके खाते में जमा किया जाता है. इसमें बिचौलिये की भूमिका नहीं होती है.

विधायकों और सांसदों के वेतन को लेकर सभापति ने कहा कि संविधान में विधायिका, सांसदों, विधायकों के लिए प्रावधान किया गया था, लेकिन इसके लिए एक समान तंत्र नहीं है. कई राज्यों में विधायकों को सांसद की तुलना में अधिक वेतन और भत्ता मिलता है. पेंशन के मामले में भी काफी अंतर है. ऐसे मुद्दे का समाधान कानून के जरिये किया जाना चाहिए.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version