गौरतलब है कि देश में सुप्रीम कोर्ट ने 50% आरक्षण की सीमा तय कर रखी है. लेकिन असाधारण परिस्थितियों में इसे पार किया जा सकता है, बशर्ते सामाजिक न्याय का मजबूत आधार साबित किया जाए. कर्नाटक सरकार इसी आधार पर तमिलनाडु (69%) और झारखंड (77%) जैसे राज्यों का उदाहरण दे रही है.
इस समय कर्नाटक में एससी-एसटी को 24%, ओबीसी को 32% और ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण दिया जा रहा है. ओबीसी की आबादी करीब 70% मानी जाती है, ऐसे में सरकार इसे सामाजिक न्याय का सवाल बता रही है. अब देखना है कि क्या ये प्रस्ताव कानूनी कसौटी पर खरा उतर पाएगा या नहीं.
70% ओबीसी आबादी के आधार पर आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश
जातिगत जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक में पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की आबादी लगभग 70% है. इसी आधार पर आयोग ने आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश करते हुए कहा है कि आबादी के अनुपात में सरकारी लाभ और अवसरों का वितरण ही सामाजिक न्याय का सही रास्ता है. प्रस्ताव के तहत आरक्षण न केवल शिक्षा और सरकारी नौकरियों में, बल्कि स्थानीय निकायों में भी लागू करने की योजना है.
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