मणिपुर में रहने वाले कुकी समुदाय द्वारा ‘अलग प्रशासन’ की मांग के खिलाफ मैतेई समुदाय ने शनिवार को ‘विशाल रैली’ आयोजित की जिसमें घाटी के पांच जिलों के हजारों लोगों ने हिस्सा लिया. रैली में शामिल लोगों ने राज्य की क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखने की मांग की जो मई महीने के शुरुआत से ही जातीय हिंसा का सामना कर रहा है.
कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटिग्रीटी (सीओसीओएमआई) द्वारा आयोजित रैली की शुरुआत इंफाल पश्चिम जिले के थांगमेबंद से शुरू हुई और पांच किलोमीटर की दूरी तय कर इंफाल पूर्वी जिले के हप्ता कंगजेयबुंग में संपन्न हुई. रैली में शामिल लोगों ने तख्तियां ले रखी थीं और उन्होंने अलग प्रशासन की मांग करने वाले और ‘‘ म्यांमा के अवैध प्रवासियों’’के खिलाफ नारेबाजी की.
यह प्रदर्शन ऐसे समय किया गया जब विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ का 21 सांसदों का प्रतिनिधि जमीनी स्तर का आकलन करने के लिए राज्य के दौरे पर है. मणिपुर विधानसभा के लिए निर्वाचित कुकी समुदाय के 10 विधायकों ने मई महीने में अलग प्रशासन की मांग करते हुए कहा कि प्रशासन चिन-कुकी-जोमी आदिवासियों की ‘रक्षा करने में पूरी तरह से नाकाम’’है. अगल प्रशासन की मांग करने वाले कुकी समुदाय ने स्पष्ट नहीं किया है कि अलग प्रशासन का क्या अभिप्राय है और किन इलाकों को वे प्रस्तावित नयी व्यवस्था के तहत लाना चाहते हैं.
रैली का आयोजन करने वाली समिति खबरों के तहत दिल्ली में गृह मंत्रालय और पूर्व कुकी उग्रवादियों के खिलाफ वार्ता का भी विरोध किया है. बिष्णुपुर जिले से प्रदर्शन में शामिल होने गए सरत नामक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘‘तीन महीने से आगजनी, हत्याएं और हमारे घरों को जलाया जा रहा है, कैसे हम अपनी जमीन छोड़ सकते हैं.’’ रैली में शामिल उरीपोक इलाके के निवासी के गांधी ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि सेना उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई करे.’’ प्रदर्शनकारियों ने हप्ता कंगजेयबुंग में बैठक की और यहां पर राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू करने और पांच अगस्त से पहले राज्य में जातीय हिंसा पर चर्चा के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की.
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासियों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.
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