Railway: रेलटेल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया(रेलटेल) को देश के 71 स्टेशनों पर कवच सिस्टम लगाने का ठेका दिया गया है. यह कवच सिस्टम दानापुर और सोनपुर डिविजन में लगाया जायेगा. लगभग 502 किलोमीटर रेल ट्रैक पर कवच सिस्टम लगाया जायेगा और इस पर लगभग 288 करोड़ रुपये खर्च होगा. रेल टेल को कवच सिस्टम लगाने का यह सबसे बड़ा ठेका मिला है. पूर्वी मध्य रेलवे में कवच सिस्टम लगाने से यात्री सुरक्षा बेहतर होने के साथ ही रेल की ऑपरेशनल क्षमता भी बढ़ेगी. स्वदेशी निर्मित कवच सिस्टम का विकास ट्रेनों के आपसी टक्कर रोकने के लिए किया गया है.
अगर कोई ट्रेन सिग्नल के बिना मंजूरी के आगे बढ़ेगी तो अचानक ब्रेक लग जायेगा और ट्रेनों की टक्कर नहीं हो सकेगी. पूर्वी मध्य रेलवे के पूरे नेटवर्क पर कवच सिस्टम लगाने की योजना है. रेलटेल के प्रबंध निदेशक संजय कुमार का कहना है कि रेल टेल का चयन कवच सिस्टम लगाने के लिए करना हमारे लिए गर्व की बात है. यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में यह सिस्टम काफी मददगार साबित होगा. रेलटेल गुणवत्ता को सुनिश्चित करते हुए तय समय में इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का काम करेगा.
रेलवे को बेहतर बनाने में तकनीक का होगा अहम रोल
रेलवे कवच सिस्टम के अलावा अन्य तकनीक का इस्तेमाल कर भारतीय रेलवे को आधुनिक बनाने का काम कर रहा है. रेलटेल रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए कई आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रहा है ताकि इंफ्रास्ट्रक्चर और यात्री सुविधा को बेहतर बनाया जा सके. रेलवे को डिजिटल बनाने में रेलटेल अहम भूमिका निभा रहा है. रेलवे मंत्रालय के तहत आने वाला रेलटेल एक सार्वजनिक उपक्रम कंपनी है और रेलवे को आईटी सेवा मुहैया कराता है. रेलवे ट्रैक पर 62 हजार किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर बिछाने का काम कंपनी ने किया है.
रेलवे के पास कुल 18 हजार इलेक्ट्रीफाइड लोकोमोटिव हैं. अगले दो साल में इनमें से 10 हजार लोकोमोटिव में कवच लगाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए रेल कर्मियों को ट्रेनिंग भी देने का काम चल रहा है. फिलहाल कुल 15 हजार किलोमीटर रेल ट्रैक पर कवच लगाने का टेंडर दिया गया है. अब तक एक हजार किलोमीटर रेलवे ट्रैक पर कवच लगाया गया है. एक लोकोमोटिव में कवच लगाने पर लगभग 80 लाख रुपये और प्रति किलोमीटर रेलवे ट्रैक पर कवच लगाने में 60 लाख रुपये खर्च होता है.
क्या है कवच प्रणाली
ट्रेन हादसों को रोकने के लिए रेल मंत्रालय हर स्तर पर कई कदम उठा रहा है. आपसी टक्कर रोकने के लिए कवच सिस्टम को व्यापक पैमाने पर लगाने का काम शुरू किया गया है. रेलवे ने 10 हजार लोकोमोटिव और 9600 किलोमीटर पटरियों पर कवच सिस्टम लगाने के लिए टेंडर जारी कर दिया है. कवच 4.0 को कोटा-सवाई माधोपुर के 108 किलोमीटर ट्रैक पर लगाने को मंजूरी दी गयी है. कचव सिस्टम संबंधी जानकारी के लिए लोको पायलटों को ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया गया है और फिलहाल 425 चीफ लोको पायलट को ट्रेनिंग दी जा रही है.
गौरतलब है कि वर्ष 2012 में कवच प्रणाली को विकसित करने का विचार आया और 2016 में यात्री ट्रेन में फील्ड ट्रायल किया गया. फील्ड ट्रायल के बाद वर्ष 2017 में कवच प्रणाली का प्रारंभिक ढांचा तैयार किया गया. वर्ष 2020-21 में रेल मंत्रालय ने 160 किलोमीटर की रफ्तार के लिए कवच प्रणाली को मंजूरी दी.
रेलवे का कवच प्रोजेक्ट दुनिया की सबसे सस्ती स्वचालित ट्रेन टक्कर सुरक्षा प्रणाली है और इसपर प्रति एक किलोमीटर पर लगभग 60 लाख रुपये का खर्च आता है, जबकि अन्य देशों में यह खर्च लगभग 2 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर है. इस प्रणाली में हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो संचार का इस्तेमाल किया जाता है और इससे पांच किलोमीटर के दायरे की सभी ट्रेनें रुक जाती है. रेलवे का मानना है कि सस्ती तकनीक होने के कारण भारतीय कंपनियां वैश्विक बाजार में अपनी पहुंच बढ़ा सकती है. उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के देशों, मलेशिया, ताइवान और अन्य देशों में इस तकनीक की काफी मांग है.
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