आरक्षण के खिलाफ बोलना गुनाह नहीं, जानिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

High Court: हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि निजी बातचीत में जातिगत आरक्षण पर टिप्पणी करना, विशेष रूप से सार्वजनिक मंच पर न होने पर, एससी-एसटी ऐक्ट के तहत अपराध नहीं माना जा सकता.

By Aman Kumar Pandey | December 1, 2024 1:10 PM
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High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने जातिगत आरक्षण पर निजी बातचीत में की गई टिप्पणी को एससी-एसटी ऐक्ट के तहत अपराध मानने से इनकार कर दिया. यह आदेश एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया, जहां एक महिला ने अपने बॉयफ्रेंड के साथ रिश्ता तोड़ते समय वॉट्सऐप पर आरक्षण और जाति को लेकर एक मैसेज भेजा था.

शख्स ने दावा किया कि महिला ने उसे जातिगत टिप्पणी वाला मेसेज भेजा, लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि वह मैसेज एक फॉरवर्डेड संदेश था और व्यक्तिगत बातचीत का हिस्सा था. न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फालके ने कहा कि मैसेज में ऐसा कुछ नहीं था जो अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग को अपमानित करने या उनकी भावनाओं को आहत करने के इरादे से लिखा गया हो.

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हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि निजी बातचीत में जातिगत आरक्षण पर टिप्पणी करना, विशेष रूप से सार्वजनिक मंच पर न होने पर, एससी-एसटी ऐक्ट के तहत अपराध नहीं माना जा सकता. निचली अदालत द्वारा महिला के खिलाफ मामला खारिज करने के फैसले को बरकरार रखा गया.

यह मामला नागपुर से जुड़ा है, जहां 29 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर और 28 वर्षीय महिला ने गुपचुप शादी की थी. रिश्ता तब बिगड़ा, जब महिला को पता चला कि शख्स अनुसूचित जाति से है. रिश्ते में तनाव के बीच महिला ने वॉट्सऐप पर एक मैसेज भेजा, जिसे आधार बनाकर शख्स ने महिला और उसके पिता के खिलाफ केस दर्ज किया था.

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