Viral Video: केरल के खेतों में बत्तखों की परेड, जानिए क्यों केरल के किसान खेतों में चलवाते हैं बत्तखें

Viral Video: केरल के त्रिशूर जिले में स्थित कोले वेटलैंड्स (Kole Wetlands) में धान की कटाई के बाद ये बत्तखें खेतों में छोड़ी जाती हैं. इस प्रक्रिया को 'डक हर्डिंग' कहा जाता है. यह कोई नया ट्रेंड नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही एक परंपरा है. जब खेतों में पानी भर जाता है और मिट्टी नरम होती है

By Abhishek Pandey | April 14, 2025 4:14 PM
an image

Viral Video: सोशल मीडिया पर इन दिनों एक वीडियो ने सबका दिल जीत लिया है. हरे-भरे धान के खेतों के बीच, सैकड़ों की तादाद में बत्तखें कतार में चलती हुई नज़र आ रही हैं. न कोई हड़बड़ी, न कोई शोर-शराबा बस  शांति से, अनुशासन में चलते हुए ये बत्तखें ऐसा नज़ारा पेश कर रही हैं जिसे देखकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए. लेकिन इस वायरल वीडियो के पीछे की कहानी सिर्फ खूबसूरती नहीं, बल्कि केरल की पारंपरिक कृषि व्यवस्था और पर्यावरणीय संतुलन की एक शानदार मिसाल है.

धान की कटाई के बाद शुरू होता है बत्तखों का ‘फील्ड डे’

केरल के त्रिशूर जिले में स्थित कोले वेटलैंड्स (Kole Wetlands) में धान की कटाई के बाद ये बत्तखें खेतों में छोड़ी जाती हैं. इस प्रक्रिया को ‘डक हर्डिंग’ कहा जाता है. यह कोई नया ट्रेंड नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही एक परंपरा है. जब खेतों में पानी भर जाता है और मिट्टी नरम होती है, तो ये बत्तखें कीड़ों, घोंघों और खेत में बची फसल के अंशों को खाकर खेत को साफ करती हैं. यह सिर्फ किसानों के लिए मुफीद नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी बेहद ज़रूरी है. इससे कीटनाशक दवाओं की ज़रूरत कम पड़ती है और खेत की उर्वरता बनी रहती है.

वर्ल्ड लेवल पर मान्यता प्राप्त वेटलैंड्स

त्रिशूर के कोले वेटलैंड्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है. यह क्षेत्र ‘Ramsar Convention’ के अंतर्गत आता है, जो दुनियाभर के ऐसे वेटलैंड्स की सूची है जिन्हें पारिस्थितिकीय संतुलन के लिहाज़ से अहम माना जाता है. यह इलाका लगभग 13,632 हेक्टेयर में फैला हुआ है और यहां हर साल सर्दियों में प्रवासी पक्षियों का भी आगमन होता है. ऐसे में बत्तख पालन, धान की खेती और जैव विविधता तीनों को एकसाथ संतुलित रूप से आगे बढ़ाया जाता है.

चलती है बत्तख तो होती है खेती

इस बत्तख पालन से न सिर्फ खेतों को फायदा होता है, बल्कि यह स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का भी बड़ा ज़रिया है. कई परिवार पीढ़ियों से इस परंपरा को निभा रहे हैं. युवा पीढ़ी अब सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए इस परंपरा को दुनिया के सामने ला रही है, जिससे पर्यटन और स्थानीय उत्पादों को भी बढ़ावा मिल रहा है.

Also Read: दिल्ली से कराची, फिर ढाका तक, जब एक हर्बल दुकान ने रचा इतिहास, जानिए रूह अफ़ज़ा की पूरी कहानी

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version