VS Achuthanandan Passes Away: केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन का 101 साल की उम्र में निधन, पीएम मोदी ने जताया शोक

VS Achuthanandan Passes Away: भारत के सबसे सम्मानित कम्युनिस्ट नेताओं में से एक और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन का सोमवार को 101 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जताया है. वरिष्ठ नेता का दोपहर 3.20 बजे पट्टोम एसयूटी अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई में इलाज के दौरान निधन हो गया. अच्युतानंदन का 23 जून को हार्ट अटैक के बाद से उपचार किया जा रहा था.

By ArbindKumar Mishra | July 21, 2025 7:34 PM
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VS Achuthanandan Passes Away: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए एक्स पर पोस्ट डाला है. पीएम मोदी ने उनके साथ अपनी एक पुरानी तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, “केरल के पूर्व मुख्यमंत्री श्री वीएस अच्युतानंदन जी के निधन से मुझे गहरा दुःख हुआ है1 उन्होंने अपने जीवन के कई वर्ष जनसेवा और केरल की प्रगति के लिए समर्पित कर दिए. मुझे अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्री रहते हुए हमारी मुलाकातें याद आती हैं. इस दुःख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं.”

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के संस्थापक सदस्य थे अच्युतानंदन

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के संस्थापक सदस्य अच्युतानंदन आजीवन श्रमिकों के अधिकारों, भूमि सुधारों और सामाजिक न्याय के पक्षधर रहे. उन्होंने 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और 7 बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए, जिसमें से तीन कार्यकाल के दौरान वह नेता प्रतिपक्ष रहे.

कपड़ा दुकान और कारखाने में मजदूर के रूप में भी किया काम

20 अक्टूबर, 1923 को अलप्पुझा जिले के तटीय गांव पुन्नपरा में जन्मे अच्युतानंदन का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों और गरीबी से भरा रहा. 4 साल की उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया और स्कूली पढ़ाई के दौरान ही उनके पिता का देहांत हो गया, जिसके कारण उन्हें सातवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. उन्होंने कुछ समय के लिए एक कपड़ा दुकान में और बाद में नारियल के रेशे के कारखाने में मजदूर के रूप में काम किया.

1940 के दशक में अच्युतानंदन की राजनीतिक यात्रा शुरू हुई थी

अच्युतानंदन की राजनीतिक यात्रा 1940 के दशक में प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता पी कृष्ण पिल्लई से प्रेरित होकर शुरू हुई. 1943 में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में अलप्पुझा का प्रतिनिधित्व किया. 1946 के पुन्नपरा-वायलार विद्रोह के दौरान, वह भूमिगत हो गए और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा बुरी तरह पीटा गया. पुलिस ने उन्हें मृत मान लिया था और जब उन्हें जंगल में दफनाया जाने वाला था, तभी पता चला कि वह अब भी जीवित हैं और उन्हें अस्पताल ले जाया गया. 1946 के विद्रोह के दौरान यातनाएं सहने के बावजूद, वह फिर सक्रिय राजनीतिक में लौट आए. 1956 में वह पार्टी की प्रदेश समिति में शामिल हुए और लगातार आगे बढ़ते हुए प्रमुख राष्ट्रीय पदों पर पहुंचे. 1964 में वह राष्ट्रीय परिषद के उन 32 सदस्यों में शामिल थे जिन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से अलग होकर माकपा का गठन किया जो भारतीय वामपंथी राजनीति में एक अहम मोड़ था. उसी वर्ष वह पार्टी की केंद्रीय समिति में शामिल हुए और 1985 में पोलित ब्यूरो में शामिल किए गए.

अच्युतानंदन तीखे भाषणों और अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे

अच्युतानंदन अपनी ईमानदारी, बोलचाल की मलयालम भाषा में तीखे भाषणों, भ्रष्टाचार, भूमि हड़पने और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ अपने दृढ़ रुख के लिए जाने जाते थे. एक समय उन्हें पार्टी के आधिकारिक रुख की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के कारण पोलित ब्यूरो से हटा दिया गया था. अच्युतानंदन के लिए, विचारधारा कोई ऐसी चीज नहीं थी जिस पर वह यूं ही विश्वास करते थे, बल्कि वह थी जिसे उन्होंने जिया था. जब वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सत्ता में लौटा, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से वंचित कर दिया गया. पार्टी ने आंतरिक फैसलों का हवाला देते हुए उन पर ‘गुटबाजी की मानसिकता’ रखने का आरोप लगाया और उनकी जगह पिनराई विजयन को चुना.

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