USAID: यूएसएड फंडिंग को लेकर उठा विवाद भारत-अमेरिका संबंधों के बीच एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है. हालांकि, रिपोर्ट्स से स्पष्ट हुआ कि यह फंडिंग भारत के लिए नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लिए थी. बावजूद इसके अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान ने भारत की राजनीति और सरकार में हलचल मचा दी है. डोनाल्ड ट्रंप के बयान और यूएसएड फंडिंग को लेकर मिली जानकारी ने सरकार को चिंता में डाल दिया है.
भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप चिंताजनक
भारत सरकार ने शुक्रवार को कहा कि देश में कुछ गतिविधियों के लिए ‘यूएसएड’ की ओर से फंडिंग किए जाने के खुलासे बेहद परेशान करने वाले हैं और इससे भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि संबंधित विभाग और अधिकारी इस मुद्दे की जांच कर रहे हैं और अमेरिकी प्रशासन से प्राप्त जानकारी की समीक्षा की जा रही है.
विदेश मंत्रालय का आधिकारिक बयान
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमने अमेरिकी प्रशासन की ओर से दी गई कुछ अमेरिकी गतिविधियों और उनके फंडिंग की जानकारी देखी है. ये स्पष्ट रूप से बहुत परेशान करने वाली हैं. इससे भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की चिंताएं पैदा हुई हैं. संबंधित विभाग और एजेंसियां इस मामले की जांच कर रही हैं और उचित कदम उठाए जाएंगे.”
डोनाल्ड ट्रंप का बयान और विवाद
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में मियामी में एक कार्यक्रम के दौरान दावा किया कि यूएसएड ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर (करीब 2.1 करोड़ डॉलर) की फंडिंग दी थी. ट्रंप ने इस फंडिंग पर सवाल उठाते हुए कहा, “भारत में वोटिंग के लिए 21 मिलियन डॉलर? हम भारत में मतदान की परवाह क्यों कर रहे हैं? हमारे पास पहले से ही बहुत सारी समस्याएं हैं। यह एक रिश्वत जैसी योजना लगती है.”
भारत में बढ़ी सियासी हलचल
ट्रंप के इस बयान ने अमेरिकी प्रशासन और भारत सरकार के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ा दिया है. भाजपा ने इस मुद्दे को उठाते हुए विपक्षी दल कांग्रेस पर विदेशी ताकतों के प्रभाव में आने का आरोप लगाया है. भाजपा ने कांग्रेस पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या विपक्षी दलों को इस विदेशी अनुदान के बारे में कोई जानकारी थी?
भारत नहीं, बांग्लादेश था असली लक्ष्य: रिपोर्ट में नया खुलासा
अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 21 मिलियन डॉलर की यह राशि भारत के लिए नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लिए स्वीकृत की गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक, इस फंड में से 13.4 मिलियन डॉलर पहले ही बांग्लादेश में छात्रों और राजनीतिक संगठनों को बांटे जा चुके हैं. ये फंड जनवरी 2024 में हुए बांग्लादेशी चुनावों से पहले जारी किए गए थे.
विवादित यूएसएड फंडिंड की क्या है सच्चाई
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) की ओर से प्रकाशित लिस्ट के अनुसार, यूएसएड ने वाशिंगटन डीसी स्थित एक संगठन कन्सोर्टियम फॉर इलेक्शन एंड पॉलिटिकल स्ट्रेंथेनिंग (सीईपीपीएस) के माध्यम से यह फंड जारी किया था. इस फंडिंग का उद्देश्य “समावेशी और भागीदारीपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया” को बढ़ावा देना था.
क्या कहता है यूएसएड का रिकॉर्ड
- यूएसएड के आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, 2008 के बाद से भारत में किसी भी सीईपीपी परियोजना के लिए कोई फंडिंग नहीं की गई है.
- सीईपीपीएस को 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग मिली, लेकिन यह फंड बांग्लादेश में “अमर वोट अमर” (मेरा वोट मेरा है) परियोजना के तहत खर्च हुआ.
- यह परियोजना जुलाई 2022 में शुरू हुई और नवंबर 2022 में इसका नाम बदलकर ‘नागोरिक कार्यक्रम’ कर दिया गया.
- 21 मिलियन डॉलर की इस अनुदान राशि में से 13.4 मिलियन डॉलर पहले ही खर्च किए जा चुके हैं.
- यह फंड इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस), इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट (आईआरआई) और नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट (एनडीआई) के जरिए वितरित किया गया था.
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भारत सरकार कर रही है जांच
भारत सरकार इस मामले की गहन जांच कर रही है और अमेरिका से आधिकारिक स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है. विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि वह इस विषय पर उचित कार्रवाई करेगा और भारत के आंतरिक मामलों में किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा.
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