-प्रेम कुमार-
धारा 370 में हुए सारे बदलाव जम्मू-कश्मीर की विधानसभा की इच्छा से हुए हैं. इसे क्यों नहीं आत्मनिर्णय माना जाना चाहिए? केवल निहित स्वार्थ और भेदभावपूर्ण नीतियों पर चलने के लिए किसी को आत्मनिर्णय का अधिकार नहीं दिया जा सकता. जम्मू-कश्मीर की हिंदू आबादी पर अत्याचार कैसे रुकेगा? उनके आत्मनिर्णय की बात क्यों नहीं की जाती? उनके पास तो पाकिस्तान में जाने का विकल्प भी नहीं था. अपने ही देश में कश्मीरी हिंदू शरणार्थी हो गये. सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या हिंदुस्तान को आत्मनिर्णय का अधिकार दिया जा सकता है कि वह केवल हिंदू देश के तौर पर अपनी किस्मत का फैसला करे या अविभाजित हिंदुस्तान का संकल्प ले या जम्मू-कश्मीर जैसे प्रदेशों को खुद से अलग नहीं होने देने का संकल्प ले? ऐसा न होना चाहिए और न हो सकता है. इसलिए धारा 370 को हटाने या बनाये रखने के सवाल को आत्मनिर्णय से जोड़ने की कोशिश भी गलत है. अगर हम आंखें और दिमाग खोलकर इसे समझें तो बात बिल्कुल समझ में आ जाएगी. समस्या धारा 370 नहीं है, समस्या है दो अलग-अलग सोच.