राजेंद्र तिवारी
बड़ी संख्या में पाठकों ने अपने अखबार प्रभात खबर को और बेहतर बनाने के लिए राय व सुझाव भेजे हैं. डाक, इ-मेल, फैक्स और ऑनलाइन ही नहीं, बल्कि कई पाठक प्रभात खबर के कार्यालय में प्रश्नावली जमा करने खुद आये. स्थिति यह है कि प्रश्नावली जमा करने की अंतिम तिथि बीत जाने के एक हफ्ते बाद यानी आज तक हमें डाक मिल रही है. हमारे प्रसार क्षेत्र के हर कोने से पाठकों ने इसमें हिस्सा लिया है. चाहे वह दूर-दराज का गांव हो या राजधानी या महानगर. इससे हम यह अनुमान सहज लगा सकते हैं कि प्रभात खबर को पाठक कितना स्नेह देते हैं. इसके लिए प्रभात खबर आपका दिल से आभारी है.
हमने अपने पाठकों से एक सवाल पूछा था कि आप प्रभात खबर पढ़ने में कितना समय लगाते हैं. हमें जो जवाब मिले, वह हमारे विश्वास को ही पुख्ता कर रहे हैं. खैर, इस सवाल पर पाठकों के जवाब पर चर्चा करने से पहले मैं एक वाकया शेयर करना चाहूंगा, जो इसी सवाल से संबंधित है. एक बड़े अखबार का वार्षिक संपादकीय सम्मेलन था. उस सम्मेलन में अखबार प्रबंधन ने एक सत्र पाठकों के फीडबैक का भी रखा था. अलग-अलग जगहों से करीब एक दर्जन पाठक आमंत्रित किये गये थे. इस सत्र के दौरान एक नौजवान पाठक ने अपनी बात कुछ इस तरह रखी – मैं सुन रहा हूं कि आप लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पाठकों के पास समय बहुत कम रहता है और इसलिए अखबार किस तरह से सामग्री परोसे कि इस कम समय में ही पाठक सब कुछ जान लें.
मेरा सवाल आप लोगों (अखबार के संपादकों) से है कि कभी आपने सोचा है कि पाठक के पास अखबार के लिए समय कम क्यों है? आप लोग समस्या की जड़ में जाइए और पता करिए कि पाठक आपके अखबार को पढ़ने में पांच-दस मिनट ही क्यों देता है? मेरा तो मानना यह है कि अखबार में कुछ ऐसा होता ही नहीं कि पाठक उसके लिए समय निकाले. आप कुछ ऐसी सामग्री देना शुरू करिए, जिसके लिए पाठक समय निकालने पर मजबूर हो जायें.
यह बात सात-आठ साल पुरानी है, लेकिन जब भी अखबार की सामग्री पर कोई बात होती है, मेरे जेहन में यह बात कौंधने लगती है. जी हां, तो अब बताते हैं कि प्रभात खबर के इस अभियान में ऑनलाइन हिस्सा लेने वाले करीब एक चौथाई पाठकों ने कहा कि वे प्रभात खबर पढ़ने में एक घंटे से ज्यादा का समय लगाते हैं और करीब एक तिहाई पाठकों ने बताया कि वे दस मिनट से आधा घंटा तक का समय अखबार पढ़ने में व्यतीत करते हैं. एक तिहाई पाठक ऐसे हैं, जो आधा से एक घंटा तक का समय अखबार को देते हैं.
दस मिनट से कम समय अखबार पढ़ने पर खर्च करने वाले पाठकों की संख्या मात्र छह फीसदी ही है. मुङो आश्चर्य होता है कि अखबार की सामग्री को लेकर रणनीति बनाने के लिए आयोजित होने वाली वर्कशॉपों व सम्मेलनों में जोर इस बात पर रहता है कि कंटेंट की पैकेजिंग किस तरह से हो कि पाठक को कम समय (चूंकि तमाम प्रोफेशनल सर्वे व अध्ययनों के जरिये यह बताया जाता रहा है कि आम पाठक अखबार पर ज्यादा से ज्यादा औसतन 10-15 मिनट ही देता है, क्योंकि उसके पास समय की कमी है) में सब महत्वपूर्ण बातें एक नजर में मिल जायें. लेकिन हम प्रभात खबर के लोग मानते हैं कि यदि अखबार में उपयोगी और जानकारीपरक सामग्री होगी तो पाठक निश्चित तौर पर पढ़ेंगे ही. हमारी कोशिश प्रभात खबर को इसी दिशा में आगे बढ़ाने की रही है और रहेगी भी.
ऐसी ही कई जानकारियां आपके सुझावों व राय से हमें मिली हैं. सबका जिक्र यहां करना संभव है और न ही उचित. इसके लिए हमने कंप्यूटर प्रोग्राम का इस्तेमाल किया. इस प्रोग्राम में आपके फीडबैक को फीड किया जा चुका है यानी आपके सुझावों का वर्गीकरण और जवाबों को तालिकाबद्ध करने का काम हो गया है. अब हमारी विशेष संपादकीय टीम इसके विश्लेषण व परिणामस्वरूप मिलने वाली दृष्टि व दिशा को मूर्तरूप देने के लिए काम कर रही है.
प्रभात खबर को आपके फीडबैक के अनुरूप ढालने के लिए जरूरी संसाधन, प्रतिभा व स्किल जुटायी जाने वाली है. लिहाजा इसमें कुछ समय लगेगा. लेकिन हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि जल्द-से-जल्द अपनी राय व सुझावों की झलक प्रभात खबर में आपको देखने को मिलेगी. उत्सव के दिन शुरू हो गये हैं. दुर्गापूजा व दशहरा और उसके बाद दीपावली व छठ. आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं. और, एक बार फिर आपका सबका आभार और धन्यवाद, बड़ी संख्या में अपना फीडबैक भेज कर प्रभात खबर के प्रति अपने स्नेह का प्रदर्शन करने के लिए.