Table of Contents
- संताल आदिवासी थे शिबू सोरेन
- संताल आदिवासी प्रकृति पूजक हैं और मरांग बुरू उनके सर्वोच्च देवता
- संताल आदिवासियों में अंतिम संस्कार की विधि
Shibu Soren Religion : झारखंड के महानायक और आदिवासियों के सर्वमान्य नेता शिबू सोरेन के 81 वर्ष में निधन के बाद पूरा देश उनके बारे में जानने का इच्छुक है. शिबू सोरेन एक राजनेता बाद में थे वे पहले एक आंदोलनकारी थे, जिन्होंने आदिवासियों के हक और अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और सबके दिशोम गुरु यानी पथ प्रदर्शक बने. शिबू सोरेन के जीवन से जुड़ी छोटी-बड़ी चीजों के बारे में लोग जानना चाहते हैं, इसी क्रम में एक सवाल पूछा जा रहा है कि गुरुजी शिबू सोरेन का धर्म क्या था?
संताल आदिवासी थे शिबू सोरेन
दिशोम गुरु शिबू सोरेन संताल आदिवासी थे. आदिवासी यानी देश के सबसे पुराने वासी. संताल आदिवासी झारखंड के आदिवासियों में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ी जनजाति है. संताल आदिवासी ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार की मुंडा शाखा से संबंधित हैं और संताली भाषा बोलते हैं. संताल आदिवासी झारखंड के अलावा, बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और त्रिपुरा में भी निवास करते हैं.
संताल आदिवासी प्रकृति पूजक हैं और मरांग बुरू उनके सर्वोच्च देवता
संताल आदिवासी भी अन्य आदिवासियों की तरह प्रकृति पूजक हैं. ये मरांग बुरू को अपना सर्वोच्च देवता मानकर उसकी पूजा करते हैं. संताल आदिवासी यह मानते हैं कि मरांग बुरू ने ही इस सृष्टि की रचना की है और वही इसके पालनकर्ता हैं. मरांग बुरू को नदी, पहाड़ों और जंगलों के रूप में पूजा जाता है. संताल आदिवासी जाहेर थान में अपनी पूजा करते हैं, जो उनके लिए एक पवित्र स्थल होता है और पूजा सामूहिक तौर पर की जाती है. संतालों के धर्मगुरु सोमाई किस्कू बताते हैं कि मरांग बुरू हमारे सर्वोच्च देवता हैं हम उनकी सर्वोच्चता में विश्वास करते हैं, उनके अलावा भी हमारे कुछ देवता और देवी हैं, जिनकी पूजा होती है. संताली भाषा की असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ दुमनी माई मुर्मू बताती हैं कि मरांग बुरू हमारे सर्वोच्च देवता है. संताली जाहेर थान में जाहेर आयो की पूजा भी करते हैं, जो देवी का स्वरूप हैं. जाहेर थान में पत्थर और सखुआ का पेड़ होता है और उसकी पूजा की जाती है.
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संताल आदिवासियों में अंतिम संस्कार की विधि
संताल आदिवासियों में अंतिम संस्कार के रूप में ज्यादातर जलाने की परंपरा मौजूद है, लेकिन स्थान विशेष और परिस्थिति विशेष में दफनाने की परंपरा भी है. जैसे कि अगर किसी बच्चे की मौत हो, किसी गर्भवती स्त्री की मौत हो तो उसे दफनाया जाता है. इसी वजह से गुरुजी शिबू सोरेन के पार्थिव शरीर को जलाया जा रहा है. उनका पुत्र उन्हें अग्नि प्रदान करेगा. धर्मगुरु सोमाई किस्कू बताते हैं कि हमारे यहां ज्यादातर जलाने की परंपरा है. बड़ा बेटा आग देता है, लेकिन गुरुजी का बड़ा बेटा तो जीवित है नहीं इसलिए हेमंत सोरेन या बसंत सोरेन में से कोई उन्हें अग्नि देगा. उसके बाद उनकी अस्थि नदी में प्रवाहित होगी. शुद्धता के लिए तेल नहान की परंपरा होती है और उसके बाद श्राद्धकर्म होता है.डाॅ दुमनी माई मुर्मू बताती हैं कि हमारे यहां जब किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मौत होती है तो गाजे-बाजे का प्रयोग शवयात्रा में होता है. शव को जलाया जाता है या तो उसे दफनाया जाता है. उसके बाद शुद्धता के लिए तेल नहान की विधि होती है, जिसमें घर के स्त्री-पुरुष स्नान करते हैं और फिर ‘उम्बुल आदेर’ यानी आत्मा को घर बुलाने की विधि होती है. उसके बाद दशकर्म यानी भंडान होता है, जिसमें परिवार और गांव के लोगों के लिए भोज की व्यवस्था होती है.
प्रबुद्ध संताली रजनी मुर्मू बताती हैं कि हमारे समाज में अंतिम संस्कार को लेकर कोई कठोर नियम नहीं हैं. घर से शव को निकाल दिये जाने के बाद घर और परिवार की महिलाएं नदी पर स्नान के लिए जाती हैं, उसी तरह पुरुष अंतिम संस्कार के बाद स्नान करते हैं और घर में शुद्धिकरण होता है. उसके बाद सबकुछ शुद्ध मान लिया जाता है. अंतिम संस्कार में भी बाध्यता नहीं है कि आपको जलाना है या दफनाना है आपकी मर्जी पर है. हां, ज्यादातर लोग शव को जलाते हैं, जहां तक श्राद्धकर्म की बात है, तो वो परिवार के पास जब संसाधन होगा सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं, इसमें कोई टाइम लिमिट नहीं है, लेकिन जल्दी करना लोग चाहते हैं.
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