दिल्ली एमसीडी चुनाव नतीजों के बीच बिहार में राजनीति तेज, राजद नेता ने दिया बड़ा बयान
एमसीडी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय लड़ाई हो गयी थी. और त्रिकोणात्मक लड़ाई में हमेशा भारतीय जनता पार्टी जीतती है. दरअसल, त्रिकोणात्मक संघर्ष में जब वोट बंट जाते हैं, तो एक पार्टी को बहुत अच्छे नतीजे मिल जाते हैं.
यही दिल्ली नगर निगम के चुनावों में हुआ है और यही साल 2014 में लोकसभा के चुनावों में भी हुआ था, जिसमें भाजपा को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ था. दिल्ली नगर निगम के चुनावों में मिले पार्टियों के वोट प्रतिशत को देखें, तो यह वोट प्रतिशत साफ दिखाता है कि भाजपा को इतने वोट नहीं मिले हैं, जो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों को मिले हुए वोटों से ज्यादा हों. कहने का अर्थ है कि लड़ाई जब तक सीधे नहीं होगी, तब तक भाजपा नहीं हारेगी. इसका सीधा उदाहरण दिल्ली का पिछला विधानसभा चुनाव है. उस दौरान आम आदमी पार्टी की जो लहर थी, उसने कांग्रेस को सिफर पे ला खड़ा किया था और आम आदमी पार्टी की सीधी लड़ाई भाजपा से हो गयी थी. यानी लड़ाई त्रिकोणीय न होकर सीधे-सीधे दो पार्टियों के बीच हो गयी. इसका नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी को 67 सीटें हासिल हुईं और भाजपा को सिर्फ तीन सीटें ही मिल पायीं.
अगर आप गौर करें, तो सीधी लड़ाई में दिल्ली के पिछले पांच विधानसभा चुनावों में भाजपा नहीं जीत पायी है. यानी जब तक भारतीय जनता पार्टी से सीधी लड़ाई नहीं होती, या तो कांग्रेस से सीधी लड़ाई हो जाये या फिर आम आदमी पार्टी से ही हो जाये, तब तक भाजपा हार नहीं सकती. क्योंकि दिल्ली में भाजपा का जो समर्थन आधार है, उतना वोट तो उसे हर हाल में मिलता ही है.
आम आदमी पार्टी की इस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता कि यह मोदी की लहर नहीं बल्कि इवीएम की लहर है. सच्चाई यह है कि भाजपा को दिल्ली नगर निगम के चुनाव में इवीएम के दम पर नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी की अक्षमता के कारण जीत मिली है.
आम आदमी पार्टी में जो क्षमता, जो आवेग, जो उत्साह दिल्ली विधानसभा चुनाव में था, वह एमसीडी चुनाव में कहीं नहीं दिखा. जब तक आम आदमी पार्टी अपनी रणनीति को नहीं बदलेगी, तब तक उसे उसके अनुकूल फायदा नहीं मिलेगा. आप पार्टी को चाहिए था कि वह भाजपा के पिछले दस साल के कार्यकाल में एमसीडी के काम को बहस का मुद्दा बनाती, लेकिन एमसीडी चुनाव में मुद्दा तो आम आदमी पार्टी के दो साल का कार्यकाल बना रहा. और यह मुद्दा भी आम आदमी पार्टी ने ही बनाया यह नारा देकर कि- दो साल बनाम दस साल. इस नारे के बाद दिल्ली सरकार के दो साल का कामकाज दिल्ली की जनता की नजर में आ गया. इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस और भाजपा दोनों को आम आदमी पार्टी पर हमला करने का मौका मिल गया. अगर आप यह कहती कि हमारे दो साल तो अगले विधानसभा चुनाव में तय होगा, पहले दस साल नगर निगम के कामकाज का हिसाब दो, तब आप पार्टी को फायदा मिलता.
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