चीनी दबाव मंजूर नहीं

भारत के प्रतिकार के बाद अब चीन ने भी यह समझ लिया है कि सैन्य दबाव से वह अपने स्वार्थों को नहीं साध सकेगा. जयशंकर की टिप्पणी भारत की ओर से एक चेतावनी भी है.

By संपादकीय | November 2, 2020 6:05 AM
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लगातार बैठकों और वार्ताओं के बावजूद लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच छह माह से अधिक समय से जारी तनातनी बनी हुई है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि दोनों देशों के संबंध बेहद तनावपूर्ण हैं तथा इसे सामान्य बनाने के लिए आवश्यक है कि सीमा प्रबंधन पर द्विपक्षीय समझौतों का पूरी तरह से पालन सुनिश्चित हो. उन्होंने भारत के रुख को फिर से स्पष्ट किया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा की यथास्थिति में एकपक्षीय परिवर्तन भारत स्वीकार नहीं करेगा. वैश्विक महामारी के बीच चीनी सेना ने अप्रैल के बाद से ही इस क्षेत्र में भारतीय निगरानी दस्तों की गतिविधियों को बाधित करने के साथ नियंत्रण रेखा के भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण के अनेक प्रयास किये हैं.

इस क्रम में चीन ने भारतीय सैनिकों पर हिंसक हमलों को भी अंजाम दिया है. चीनी सेना की इस आक्रामकता तथा अस्थायी सीमा के आसपास भारी मात्रा में सैन्य साजो-सामान के साथ अपनी टुकड़ियों की तैनाती के उत्तर में भारत ने भी उस क्षेत्र में समुचित बंदोबस्त किया है. नियंत्रण रेखा को मनमाने ढंग से बदलने की नीयत से चीन 2017 में सिक्किम क्षेत्र में डोकलाम में भी घुसपैठ की कोशिश कर चुका है. वास्तविकता यह है कि ऐसे अतिक्रमण वर्षों से हो रहे हैं. वर्ष 2015 में ऐसी 428 घटनाओं को दर्ज किया था, जिनकी संख्या 2019 में 663 हो गयी. इस वर्ष तो कई दशकों के बाद सैनिकों के संघर्ष और गोलीबारी की वारदात भी हो चुकी है.

जैसा कि विदेश मंत्री ने रेखांकित किया है, सीमा पर तीन दशकों की शांति की वजह से वाणिज्य-व्यापार समेत अनेक क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने में मदद मिली थी. लेकिन अब यह कहा जा सकता है कि भारत से आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए चीन एक ओर द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने की कोशिश करता रहा था, तो दूसरी ओर उसकी आक्रामकता भी बढ़ती जा रही थी. इसे कूटनीतिक धोखे के अलावा और कोई संज्ञा नहीं दी जा सकती है. भारत पर दबाव बढ़ाने तथा पाकिस्तान को तुष्ट करने के लिए वह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के बारे में तर्कहीन टिप्पणी कर भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने की हरकतें भी करता रहा है.

वह बरसों तक कुख्यात आतंकी सरगना मसूद अजहर का बचाव भी करता रहा था ताकि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित न किया जा सके. बहरहाल, भारत के प्रतिकार के बाद अब उसने भी यह समझ लिया है कि सैन्य दबाव से वह अपने स्वार्थों को नहीं साध सकेगा. जयशंकर की टिप्पणी भारत की ओर से एक चेतावनी भी है. ऐसे में तनाव समाप्त करने के लिए सीमावर्ती इलाकों में अप्रैल की स्थिति बहाल करने का ही शांतिपूर्ण रास्ता बचता है. इसलिए जरूरी है कि कूटनीतिक समाधान निकालने के भारतीय सुझाव पर चीन गंभीरता से विचार करे.

Posted by: Pritish Sahay

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